- उत्तर प्रदेश मादक पान (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1976
- 1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ
- 2. परिभाषाएँ
- 3. मादक पान सम्बन्धी विज्ञापनों का प्रतिषेध
- 4. उपधारणा
- 5. सारवान वस्तुओं को जिसमें प्रकाशित विज्ञापन हो, निरीक्षण और अभिग्रहण करने की शक्ति
- 6. शास्ति
- 7. कम्पनियों द्वारा अपराध
- 8. अपराधों का अन्वेषण
- 9.सदभावनापूर्वक की गई कार्यवाही के लिये परित्राण
- 10. अपराधों का शमन करने की शक्ति
- 11. नियम बनाने की शक्ति
- 12. निरसन और अपवाद
उत्तर प्रदेश मादक पान (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1976
1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ
(1) यह अधिनियम उत्तर प्रदेश मादक पान (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1976[1] कहा जायेगा।
(2) इसका विस्तार सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश में होगा।
(3) यह 1 नवम्बर, 1975 से प्रवृत्त समझा जायगा।
2. परिभाषाएँ
इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो-
(क) “विज्ञापन” के अन्तर्गत कोई मुद्रित, साइक्लोस्टाइल, टाइप किया हुआ, हाथ से लिखा हुआ या रंग से तैयार किया हुआ पदार्थ या रेखांकन या चित्रांकन है और ऐसे पदार्थ, रेखांकन या चित्रांकन का किसी सार्वजनिक स्थान में किसी दीवाल, भवन या विज्ञापन-पट पर वितरण या प्रदर्शन अथवा चलचित्र प्रदर्शन, निआन साइन या अन्य प्रकार से प्रकाश या ध्वनि उत्पन्न या प्रसारित करके प्रख्यापन भी है;
(ख) “आबकारी निरीक्षक” या अन्य “आबकारी अधिकारी” का तात्पर्य संयुक्त प्रान्त आबकारी अधिनियम, 1910 (संयुक्त प्रान्त अधिनियम संख्या 4, 1910) की धारा 10 के अधीन नियुक्त आबकारी निरीक्षक या अन्य आबकारी अधिकारी से है;
(ग) “मादक पान” के अन्तर्गत औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 (अधिनियम संख्या 23, 1940) में यथा परिभाषित औषधि नहीं है।
3. मादक पान सम्बन्धी विज्ञापनों का प्रतिषेध
कोई भी व्यक्ति किसी मादक पान के उपयोग के लिए निवेदन या उसे विक्रय के लिए प्रस्तुत करने वाला कोई विज्ञापन न तो प्रकाशित करेगा और न प्रकाशित करायेगा।
स्पष्टीकरण-किसी ऐसे भू-गृहादि में, जहाँ मादक पान बनाया या बेचा जाता हो या बेचने के लिए प्रस्तुत किया जाता हो, किसी ऐसे साइन बोर्ड को, जिस पर केवल यह इंगित हो कि उस भू-गृहादि में ऐसा मादक पान बनाया या बेचा जाता है या बेचने के लिये प्रस्तुत किया जाता है और ऐसे भू-गृहादि में रखे गये या अनुरक्षित ऐसी मादक पान के सूचीपत्र या मूल्य सूची को उक्त विज्ञापन का प्रकाशन नहीं माना जायगा ।
4. उपधारणा
जहाँ धारा 3 का उल्लंघन करके मादक पान सम्बन्धी कोई विज्ञापन प्रकाशित किया गया हो, वहाँ यह उपधारणा की जायगी कि जब तक इसके प्रतिकूल साबित न कर दिया जाय जिस व्यक्ति की ओर से उसका प्रकाशन अभिप्रेत है, उस व्यक्ति ने उस विज्ञापन को प्रकाशित किया या कराया है।
5. सारवान वस्तुओं को जिसमें प्रकाशित विज्ञापन हो, निरीक्षण और अभिग्रहण करने की शक्ति
(1) इस निमित्त बनाये गये किसी नियम के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, कोई भी आबकारी अधिकारी, जो आबकारी निरीक्षक के पद से नीचे का न हो-
(क) किसी ऐसे स्थान में, जहां उसे यह विश्वास करने का कारण हो कि इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय कोई अपराध किया गया है या किया जा रहा है, ऐसी सहायता के साथ यदि कोई हो, जिन्हें वह आवश्यक समझे, किसी समय जो युक्तियुक्त हो, प्रवेश कर सकता है और तलाशी ले सकता है;
(ख) किसी विज्ञापन के प्रयोजन के लिये प्रयुक्त किसी वस्तु को जिसके बारे में उसे यह विश्वास करने का कारण हो कि उससे इस अधिनियम के किसी उपबन्ध का उल्लंघन होता है, अभिगृहीत और निरुद्ध कर सकता है;
(ग) खण्ड (क) में उल्लिखित किसी स्थान में पाये गये किसी अभिलेख, रजिस्टर, दस्तावेज या कोई अन्य सारवान वस्तु की, यदि उसे यह विश्वास करने का कारण हो कि उससे इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय कोई अपराध किये जाने का साक्ष्य मिल सकता है, परीक्षा कर सकता है और उसे अभिगृहीत कर सकता है।
(2) जहां कोई अधिकारी उपधारा (1) के अधीन कोई सम्पत्ति अभिगृहीत करता है, वहां ऐसे अभिग्रहण की सूचना तुरन्त मजिस्ट्रेट को दी जायेगी और उसकी अभिरक्षा और निस्तारण के सम्बन्ध में दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 ( अधिनियम संख्या 2, 1974) के अध्याय 34 के उपबन्ध, उसमें निर्दिष्ट सम्पत्ति पर जिस प्रकार लागू होते हैं, उसी प्रकार लागू होंगे।
6. शास्ति
धारा 3 के उपबन्धों का उल्लंघन करने वाले किसी व्यक्ति को सिद्धदोष होने पर कारावास का, जो छः मास तक का हो सकता है, अथवा जुर्माना का, अथवा दोनों दण्ड दिया जायगा ।
7. कम्पनियों द्वारा अपराध
(1) यदि इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध को करने वाला व्यक्ति कोई कम्पनी हो तो वह कम्पनी और अपराध करने के समय उस कम्पनी के कार्य संचालन का प्रभारी और उसके लिये कम्पनी के प्रति उत्तरदायी प्रत्येक व्यक्ति उस अपराध के लिये अपराधी माना जायेगा और तदनुसार कार्यवाही किये जाने और दण्ड दिये जाने का भागी होगा :
परन्तु इस उपधारा की कोई बात ऐसे किसी व्यक्ति को इस अधिनियम में उपबंधित किसी दण्ड का भागी नहीं बनायेगी, यदि वह यह साबित कर दे कि अपराध उसकी जानकारी के बिना किया गया था या उसने उस अपराध के किये जाने का निवारण करने के लिए सब सम्यक् तत्परता बरती थी ।
(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, जबकि इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किसी कम्पनी ने किया हो और यह साबित हो जाय कि वह अपराध उस कम्पनी के किसी प्रबन्ध अभिकर्ता, सचिव, कोषाध्यक्ष, निदेशक, प्रबन्धक या अन्य अधिकारी की सम्मति या मौनानुमति से किया गया है, या उसकी उपेक्षा के कारण हुआ है तो कम्पनी का वह प्रबन्ध अभिकर्ता, सचिव, कोषाध्यक्ष, निदेशक, प्रबन्धक या अन्य अधिकारी भी उस अपराध के लिये अपराधी माना जायेगा और तदनुसार कार्यवाही किये जाने और दंड दिये जाने का भागी होगा ।
स्पष्टीकरण – इस धारा के प्रयोजनों के लिये-
(क) “कम्पनी” का तात्पर्य किसी निगमित निकाय से है और उसके अन्तर्गत कोई फर्म या व्यक्तियों का अन्य समुदाय भी है; तथा
(ख) किसी फर्म के सम्बन्ध में, “निदेशक” का तात्पर्य उस फर्म के भागीदार से है ।
8. अपराधों का अन्वेषण
(1) कोई आबकारी अधिकारी, जो आबकारी निरीक्षक के पद से नीचे का न हो, इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का अन्वेषण कर सकता है, जो उस क्षेत्र की सीमा के अन्तर्गत किया गया हो, जिसमें वह अधिकारिता का प्रयोग करता है और ऐसे अन्वेषण के बारे में उसकी शक्ति वही होगी, जो पुलिस थाने के प्रभारी अधिकारी की दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (अधिनियम संख्या 3, 1974) के अध्याय 12 के उपबन्धों के अधीन संज्ञेय मामले में होती है और वह विशेषतया किसी मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना उक्त अन्वेषण कर सकता है।
(2) अन्य बातों में, गिरफ्तारी, तलाशी, तलाशी वारंट, गिरफ्तार व्यक्तियों की पेशी और अपराधों के अन्वेषण से संबंधित उक्त संहिता के उपबन्ध, यथासम्भव, इस अधिनियम के अधीन उनके संबंध में की गई सभी कार्यवाहियों पर लागू होंगे।
9.सदभावनापूर्वक की गई कार्यवाही के लिये परित्राण
इस अधिनियम के अधीन सद्भावपूर्वक की गयी या की जाने के लिये आशयित किसी बात के लिए किसी व्यक्ति के विरुद्ध कोई वाद, अभियोजन अथवा अन्य विधिक कार्यवाही नहीं की जा सकेगी।
10. अपराधों का शमन करने की शक्ति
(1) जिला मजिस्ट्रेट किसी ऐसे व्यक्ति से, जिसके विरुद्ध इस बात का युक्तियुक्त सन्देह हो कि उसने इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय कोई अपराध किया है, ऐसे अपराध के लिये, जिसके बारे में यह सन्देह हो कि उस व्यक्ति ने किया है, शमन स्वरूप ऐसी धनराशि, जिसे वह उचित समझे, ले सकता है।
(2) जिला मजिस्ट्रेट को ऐसी धनराशि का भुगतान करने पर संदिग्ध व्यक्ति यदि अभिरक्षा में हो, उन्मोचित कर दिया जायगा और उसके विरुद्ध कोई अन्य कार्यवाही नहीं की जायेगी।
(3) इस धारा के उपबन्ध वहां भी लागू होंगे जहाँ इस अधिनियम के अधीन कोई अभियोजन या किसी अपराध के लिए दोष-सिद्धि के विरुद्ध कोई अपील विचाराधीन हो और ऐसे मामले में इस धारा के अधीन ऐसे अपराध के शमन के फलस्वरूप वह अभियुक्त, जिसके प्रति अपराध का शमन किया जाय, दोष मुक्त हो जायगा ।
11. नियम बनाने की शक्ति
राज्य सरकार, गजट में अधिसूचना द्वारा इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिये नियम बना सकती है।
12. निरसन और अपवाद
(1) उत्तर प्रदेश मादक पान (आपत्तिजनक विज्ञापन) अध्यादेश, 1976 (उत्तर प्रदेश अध्यादेश संख्या 6, 1976) एतद् द्वारा निरसित किया जाता है।
(2) ऐसे निरसन या 1976 के उपर्युक्त अध्यादेश द्वारा उत्तर प्रदेश मादक पान (आपत्तिजनक विज्ञापन) अध्यादेश, 1975 (उ० प्र० अध्यादेश संख्या 33, 1975) के निरसन के होते हुये भी, उक्त अध्यादेशों के अधीन किया गया कोई कार्य या की गई कार्यवाही इस अधिनियम के अधीन किया गया कार्य या की गई कार्यवाही समझी जायगी, मानो यह अधिनियम सभी सारभूत समय पर प्रवृत था ।
Footnote
[1] राज्यपाल महोदय ने 12 अप्रैल, 1976 को अनुमति प्रदान की और उत्तर प्रदेश गजट, असाधारण विधायिका अनुभाग-1 दिनांक 13 अप्रैल, 1976 में प्रकाशित ।