Table of Contents

संयुक्त प्रान्त आबकारी अधिनियम, 1910

धारा-1–संक्षिप्त नाम, विस्तार

(1)  यह अधिनियम संयुक्त प्रान्त आबकारी अधिनियम, 1910 कहलाएगा, और

(2) इसका विस्तार सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश में होगा।

धारा-2–अधिनियमितियों का निरसन 

अनुसूची में उल्लिखित अधिनियमितियाँ उसके स्तम्भ-4 मे निर्दिष्ट सीमा तक निरसित की जाती हैं ।

धारा-3–परिभाषायें

जब तक विषय या प्रसंग में कोई बात विरूद्ध न हो, इस अधिनियम में —

(1) आबकारी राजस्व-का तात्पर्य उस राजस्व से है जो शराब अथवा मादक भेषजों के सम्बन्ध में इस अधिनियम के या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के उपबन्धों के अधीन आरोपित या आदिष्ट किसी शुल्क, फीस, कर, अर्थ दण्ड (विधि न्यायालय द्वारा आरोपित अर्थ दण्ड से भिन्‍न ), या जब्ती से प्राप्त हो या प्राप्त होने योग्य हो;

(2) आबकारी अधिकारी-का तात्पर्य कलेक्टर या किसी ऐसे अधिकारी या व्यक्ति से है जो धारा-10 के अधीन नियुक्त या शक्तियों से विनिहित किया गया हो;

(3) आबकारी आयुक्त-का तात्पर्य उस अधिकारी से है जो धारा-10 की उपधारा (2) के खण्ड (क) के अधीन राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किया गया हो;

(3-क) उत्पाद शुल्क और प्रतिशुल्क-का तात्पर्य यथास्थिति, किसी ऐसे उत्पाद शुल्क या प्रतिशुल्क से है जो संविधान की सप्तम् अनुसूची की सूची-2 की प्रविष्टि 51 मे उल्लिखित है;

(4) विनिर्माणशाला-का तात्पर्य आसवनी से भिन्न किसी ऐसी इकाई से है जहां भारत में निर्मित विदेशी शराब का निर्माण किया जाता हो और बोतल में बन्द किया जाता हो;

(5) ** निरसित

(6) ताड़ी-का तात्पर्य किण्वित या अकिण्वित ऐसे रस से है जो नारियल, ताड़, खजूर या किसी अन्य प्रकार के “पाम” वृक्ष से निकाला गया हो;

(7) पचवई-का तात्पर्य किण्वित चावल, बाजरा या किसी अन्य अनाज, चाहे उसमें कोई अन्य द्रव मिश्रित हो अथवा नहीं, तथा उससे प्राप्त किसी द्रव से है, चाहे वह अवमिश्रित हो अथवा अवमिश्रित न हो;

(8) स्प्रिट-का तात्पर्य किसी ऐसी शराब से है, जिसमें आसवन द्वारा प्राप्त अल्कोहल विद्यमान हो, चाहे वह विकृत हो अथवा न हो;

(9) विकृत-का तात्पर्य मानव उपभोग के अयोग्य ऐसी रीति से बना देने से है जिसे राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा तदर्थ विहित करे। जब यह सिद्ध कर दिया जाय कि किसी स्प्रिट मे कोई पदार्थ किसी ऐसे परिमाण मे विद्यमान है जो विकृतिकरण के प्रयोजनार्थ राज्य सरकार द्वारा विहित किया गया हो, तो न्यायालय यह उपधारणा कर सकता है कि ऐसी स्प्रिट विकृत स्प्रिट है या उसमें विकृत स्प्रिट विद्यमान है या वह विकृत स्प्रिट से प्राप्त की गई है;

(10) बियर-में एल, स्टाउट, पोर्टर तथा माल्ट से बनी अन्य सभी किण्वित शराब सम्मिलित है;

(11) शराब-का तात्पर्य मादक शराब से है और इसके अन्तर्गत वाइन की स्प्रिट, स्प्रिट, वाइन, ताड़ी, पचवई, बियर और वे सभी द्रव जिनमें अल्कोहल सम्मिलित या विद्यमान हो तथा कोई ऐसा पदार्थ भी है जिसे राज्य सरकार इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये अधिसूचना द्वारा शराब घोषित करे;

(12) मादक भेषज-का तात्पर्य निम्‍नलिखित से है –

(1) भांग (कैनेबिस सैटाइवा एल) के पौधों की पत्तियां, छोटे-छोटे डंठल तथा फूलों या फलों के शीर्ष भाग और इसमें उसके सभी रूप सम्मिलित हैं जो भांग, या सिद्धि के नाम से ज्ञात हैं ;

(2) ** निरसित

(3) मादक भेषज के उपर्युक्त रूपों मे से किसी रूप का, निष्प्रभावित पदार्थों के साथ या उनके बिना, कोई मिश्रण या उससे तैयार किया गया कोई पेय; और

(4) कोई अन्य मादक पदार्थ जिसे राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा मादक भेषज घोषित करे।

(13) मादक वस्तु-का तात्पर्य इस अधिनियम मे यथापरिभाषित किसी शराब या मादक भेषज से है;

(14) ** निरसित

(15) ** निरसित

(16) व्याकरण सम्बन्धी परिवर्तनों सहित “विक्रय” मे दान स्वरूप अन्तरण से भिन्‍न कोई अन्तरण सम्मिलित है;

(17) आयात- का तात्पर्य वाक्यांश “भारत मे आयात” के सिवाय उत्तर प्रदेश में इस प्रकार लाने से है जो केन्द्रीय सरकार द्वारा यथा परिभाषित सीमाशुल्क सरहद को पार करके लाने से भिन्‍न हो;

(18) निर्यात-का तात्पर्य उत्तर प्रदेश के बाहर इस प्रकार ले जाने से है जो केन्द्रीय सरकार द्वारा यथा परिभाषित सीमा-शुल्क सरहद को पार करके बाहर ले जाने से भिन्‍न हो;

(19) परिवहन-का तात्पर्य उत्तर प्रदेश के भीतर एक स्थान से दूसरे स्थान को ले जाने से है;

(20) निर्माण-ऐसी प्रत्येक प्रक्रिया, चाहे वह प्राकृतिक हो या कृत्रिम, सम्मिलित है जिसके द्वारा कोई मादक वस्तु उत्पादित या तैयार की जाय और इसमें पुन: आसवन तथा शराब के परिशोधन, सुस्वादकरण, सम्मिश्रण तथा रंजित करने की प्रत्येक क्रिया भी सम्मिलित है;

(20-क)-व्याकरण सम्बन्धी परिवर्तनों सहित, “खेती” का तात्पर्य बीज से किसी पौधे को उगाना है और इसके अन्तर्गत पौधे के बढ़ने के दौरान में उसकी देखभाल या उसका संरक्षण करना भी है;

(21) बोतल मे बन्द करना-का तात्पर्य विक्रय के प्रयोजनों के लिये पीपे या अन्य बर्तन से बोतल या अन्य पात्र मे अन्तरित करने से है चाहे इसमें परिशोधन की कोई प्रक्रिया प्रयुक्त हो अथवा नहीं; तथा बोतल मे बन्द करने के अन्तर्गत बोतल मे फिर से बन्द करना भी सम्मिलित है;

(22) स्थान-में मकान, भवन, दुकान (कमरा), बूथ, तम्बू तथा जलयान सम्मिलित है;

(22-क) उत्पाद शुल्कारोप्य पदार्थ-का तात्पर्य निम्‍नलिखित से है-

(क) मानव उपभोग के लिये कोई अल्कोहलिक शराब; या

(ख) कोई पिनक लाने वाला भेषज;

(23) ** निरसित

धारा-4–राज्य सरकार की यह घोषित करने की शक्ति की “शराब” किसे समझा जाय

(1)- राज्य सरकार इस अधिनियम के या इसके किसी भाग के प्रयोजनों के लिये अधिसूचना द्वारा किसी भी वस्तु को “शराब” घोषित कर सकती है।

(2)- “देशी शराब” तथा “विदेशी शराब”- राज्य सरकार इसी प्रकार से और इसी प्रकार के प्रयोजनों के लिये यह भी घोषित कर सकती है कि क्रमश: “देशी शराब” और “विदेशी शराब” किसे समझा जाय।

धारा–5

निकाल दिया गया

धारा-6–फुटकर बिक्री की सीमा घोषित करने की राज्य सरकार की शक्ति 

(1) राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा या तो सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश या उसमें समाविष्ट किसी स्थानीय क्षेत्र के सम्बन्ध में और सामान्यतया क्रेताओं या क्रेताओं के किसी निर्दिष्ट वर्ग के विषय में तथा सामान्यतया किसी निर्दिष्ट अवसर के लिये यह घोषित कर सकती है कि किसी मादक वस्तु की कितनी मात्रा, इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए, फुटकर बिक्री की सीमा होगी।

(2) थोक बिक्री-किसी मादक वस्तु की किसी मात्रा मे बिक्री जो उस मात्रा से अधिक हो जिसे राज्य सरकार ने उक्त धारा (1) के अधीन फुटकर बिक्री की सीमा घोषित की हो, थोक बिक्री समझी जायेगी।

धारा-7–पत्‍नी, लिपिक या सेवक के कब्‍जे में मादक मादक वस्तु 

जब कोई मादक वस्तु किसी व्यक्ति की पत्नी, लिपिक या सेवक के कब्जे  में उस व्यक्ति के कारण हो तो उसे इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये उस व्यक्ति के कब्जे मे समझा जायेगा।

स्पष्टीकरण—लिपिक या सेवक के रूप में अस्थायी रूप से या किसी विशेष अवसर पर सेवायोजित कोई व्यक्ति इस धारा के अर्थान्तर्गत लिपिक या सेवक है।

धारा-8–अधिनियमितियो का अपवाद 

अनुसूची मे उपबन्धित अवस्था को छोड़कर इस अधिनियम मे अन्तर्विष्ट कोई बात सी कस्टम एक्ट-1878, कैन्टोनमेन्ट्स एक्ट-1889 या इण्डियन टैरिफ एक्ट-1894 या उनके अधीन बनाये गए किसी नियम या दिये गए किसी आदेश के उपबन्धों पर प्रभाव न डालेगी।

धारा–9

** निरसित

धारा-10–जिलों में आबकारी विभाग का प्रशासन

10-(1) जब तक राज्य सरकार अन्यथा निर्देश न दे, किसी जिले मे आबकारी विभाग का प्रशासन उस जिले के कलेक्टर के प्रभार में होगा।

(2) राज्य सरकार की शक्ति-राज्य सरकार सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश पर, या उसमें समाविष्ट किसी जिले या किसी स्थानीय क्षेत्र पर लागू होने वाली अधिसूचना द्वारा—

(क) आबकारी आयुक्त नियुक्त करने के विषय में-कोई अधिकारी नियुक्त कर सकती है जो एतद्पश्चात आबकारी आयुक्त के रूप में अभिदिष्ट किया जायेगा और जो राज्य सरकार के आदेशों के अधीन रहते हुए आबकारी विभाग के प्रशासन पर नियंत्रण रखेगा।

(ख) कलेक्टर की शक्तियों का प्रयोग करने के लिये व्यक्तियों की नियुक्ति करने के विषय में- (लाइसेन्स देने वाली परिषद् संघटित कर सकती है या) आबकारी विभाग के प्रशासन के सम्बन्ध में या तो कलेक्टर के साथ-साथ या उसके अधीन या अपवर्जन मे ऐसे नियंत्रण के अधीन रहते हुये जैसा कि राज्य सरकार निर्देश दे, कलेक्टर की समस्त या उनमें से किन्हीं शक्तियों का प्रयोग करने के लिये तथा उसके समस्त या उनमें से किन्हीं कर्तव्यों का पालन करने के लिये कलेक्टर से भिन्‍न किसी व्यक्ति को नियुक्त कर सकती है;

(ग) अधिकारियों को कतिपय कर्तव्यों का पालन करने के लिये अधिकृत किये जाने के विषय में- अधिकारी को धारा-48 तथा 64(क) मे उल्लिखित कार्यों और कर्तव्यों का पालन करने के लिये अधिकृत कर सकती है तथा अधिकारियों और व्यक्तियों को धारा 50 में उल्लिखित कार्यों और कर्तव्यों का पालन करने के लिये अधिकृत कर सकती है;

(घ) आबकारी विभाग के अधिकारियों को नियुक्त किये जाने के विषय में- इस अधिनियम के अधीन आबकारी विभाग के ऐसे वर्गों के अधिकारियों को तथा ऐसे पदनामों, शक्तियों और कर्तव्यों सहित जिन्हें राज्य सरकार उचित समझे, नियुक्त कर सकती है तथा उन क्षेत्रों को परिभाषित कर सकती है, जिनके भीतर ऐसी शक्तियों और कर्तव्यों का प्रयोग और पालन किया जा सकेगा;

(ङ) आबकारी अधिकारियों से भिन्‍न अधिकारियों द्वारा तथा अन्य व्यक्तियों द्वारा शक्तियों का प्रयोग और कर्तव्यों का पालन किये जाने के आदेश का दिया जाना- आदेश दे सकती है कि इस उपधारा के खण्ड (घ) के अधीन आबकारी विभाग के किसी अधिकारी को अभ्यर्पित समस्त शक्तियों तथा कर्तव्यों या उनमें से किन्हीं शक्तियों तथा कर्तव्यों का इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन रहते हुये आबकारी विभाग के अधिकारी से भिन्‍न किसी अधिकारी द्वारा या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा प्रयोग और पालन किया जायेगा;

(च) अपनी शक्तियों को प्रतिनिहित करने के विषय में नियम बनाने के सम्बन्ध मे धारा 40 द्वारा प्रदत्त शक्ति के सिवाय इस अधिनियम के अधीन अपनी समस्त या उनमें से किन्हीं शक्तियों को आबकारी आयुक्त को प्रतिनिहित कर सकती है;

(छ) शक्तियों को वापस लेने के विषय में-किसी अधिकारी या व्यक्ति से आबकारी विभाग के प्रशासन के सम्बन्ध मे किन्हीं या समस्त शक्तियों को वापस ले सकती है ;

(ज) शक्तियों को प्रतिनिहित करने की अनुज्ञा दिये जाने के विषय में – ऐसी अधिसूचना मे निर्दिष्ट किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के वर्गों को इस अधिनियम द्वारा या इसके अधीन या आबकारी राजस्व से सम्बन्धित तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि द्वारा या अधीन प्रदत्त किन्हीं शक्तियों को आबकारी आयुक्त या कलेक्टर द्वारा प्रतिनिहित किये जाने की अनुज्ञा दे सकती है।

धारा-11–अपील और पुनरीक्षण

11-(1) कलेक्टर और प्रत्येक अन्य आबकारी अधिकारी (जो आबकारी आयुक्त नहीं है), इस अधिनियम के अधीन समस्त कार्यवाहियों के सम्बन्ध में आबकारी आयुक्त के नियंत्रण में होगा और इस अधिनियम के अधीन कलेक्टर या ऐसे अन्य अधिकारी द्वारा दिये गये समस्त आदेशों के विरूद्ध अपील, राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त बनाये गये नियमों द्वारा विहित रीति से, आबकारी आयुक्त, को की जा सकेगी :

प्रतिबन्ध यह है कि इस उपधारा के अधीन कोई अपील ग्रहण नहीं की जायेगी, जब तक कि उसे व्यथित व्यक्ति द्वारा, ऐसा आदेश संसूचित किये जाने के दिनांक से तीस दिन के भीतर प्रस्तुत न किया जाय और जब तक कि अपीलकर्ता ने, यथास्थिति, कर, फीस, शास्ति या अन्य देयों की, यदि कोई हो, विवादग्रस्त राशि की कम से कम 25 प्र‍तिशत धनराशि की अदायगी का संतोषजनक सबूत प्रस्तुत न कर दिया हो :

अग्रतर प्रतिबन्ध यह है कि अपील प्राधिकारी ऐसे विशेष और पर्याप्त कारणों से जो अभिलिखित किये जायेंगे, कर, फीस, शास्ति या अन्य देयों की ऐसी विवादग्रस्त राशि के सम्बन्ध में पूर्ववर्ती प्रतिबन्धात्मक खण्ड की अपेक्षाओं को अधित्यक्त या शिथिल कर सकता है।

(2) राज्य सरकार या तो स्वप्रेरणा से या किसी व्यथित व्यक्ति द्वारा कोई आवेदन करने पर, इस अधिनियम के अधीन किसी कार्यवाही मे दिये गये किसी आदेश से सम्बन्धित अभिलेख को किसी ऐसे आदेश की शुद्धता, वैधता या औचित्य या ऐसी कार्यवाही की नियमितता के सम्बन्ध मे अपना समाधान करने के लिये मांग सकती है और उसकी परीक्षा कर सकती है, और यदि किसी मामले में राज्य सरकार को यह प्रतीत हो कि ऐसे आदेश या कार्यवाही को परिष्कृत, उलटना या पुनर्विचार के लिये पुन: प्रेषित करना चाहिये तो वह तद्सार आदेश दे सकती है :

प्रतिबन्ध यह है कि इस धारा के अधीन किसी पक्षकार पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला कोई आदेश नही दिया जायगा जब तक कि उसे अपना अभ्यावेदन करने का युक्तियुक्त अवसर न दे दिया गया हो :

अग्रतर प्रतिबन्ध यह है कि इस उपधारा के अधीन कोई आवेदन ग्रहण नहीं किया जायगा जब तक कि वह आबकारी आयुक्त के आदेश से 30 दिन के भीतर न दिया जाय और जब तक कि अपील जहांं वह ग्राह्य हो, दायर न कर दी गयी हो और आबकारी आयुक्त द्वारा निपटा न दी गयी हो :

प्रतिबन्ध यह भी है कि पुनरीक्षण के लिये कोई आवेदन ग्रहण नहीं किया जायगा,जब तक कि आवेदक ने, यथास्थिति, कर, फीस, शास्ति या अन्य देयों की, यदि कोई हो, विवादग्रस्त राशि की कम से कम 25 प्रतिशत धनराशि की अदायगी का संतोषजनक सबूत प्रस्तुत न कर दिया हो :

प्रतिबन्ध यह भी है कि राज्य सरकार उन कारणों से, जो अभिलिखित किये जायेंगे, कर, फीस, शास्ति या अन्य देयों की ऐसी विवादग्रस्त राशि के सम्बन्ध में पूर्ववर्ती प्रतिबन्धात्मक खण्ड की अपेक्षाओं को अधित्यक्त या शिथिल कर सकती है।

धारा-12–मादक वस्तुओं का आयात 

12-(1)-कोई मादक वस्तु तब तक आयात न की जायगी जब तक कि–

(क)-राज्य सरकार ने उसके आयात के लिये या तो सामान्य या विशेष अनुज्ञा न दे दी हो;

(ख)-ऐसी शर्तें (यदि कोई हों) जिन्हें राज्य सरकार आरोपित करे, पूरी न कर दी गयी हों; और

(ग)-धारा-28 के अधीन आरोपित उत्पाद शुल्क (यदि कोई हो) का भुगतान न कर दिया गया हो या उसके भुगतान के लिये बंध-पत्र निष्पादित न कर दिया गया हो।

(2)-उपधारा(1) किसी ऐसे पदार्थ पर लागू न होगी जो भारत में आयात किया गया हो और जो इस प्रकार आयातित होने पर इण्डियन टैरिफ एक्ट-1894 अथवा सी कस्टम एक्ट-1878 के अधीन उत्पाद शुल्क का भागी हो।

(3)* निरसित।

धारा-13–मादक वस्तुओं का निर्यात तथा परिवहन 

किसी भी मादक वस्तु का तब तक निर्यात या परिवहन न किया जायगा जब तक कि —

(क)-धारा-28 के अधीन आरोपित उत्पाद-शुल्क (यदि कोई हो), या

(ख)-यदि उस वस्तु का पहले ही आयात किया गया था, तो उसके आयात पर इण्डियन टैरिफ ऐक्ट-1894 या सी कस्टम ऐक्ट-1878 के अधीन आरोपित उत्पाद-शुल्क का भुगतान न कर दिया गया हो या उसके भुगतान के लिए बंध-पत्र निष्पादित न कर दिया गया हो।

धारा–14

* निरसित।

धारा-15–आयात, निर्यात तथा परिवहन के लिये पास आवश्यक है 

किसी भी मादक वस्तु का ऐसे परिमाण, जिसे राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा या तो सामान्यतया सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश के लिये या उसमें समाविष्ट किसी स्थानीय क्षेत्र के लिये विहित करे, से अधिक परिमाण अगली अनुवर्ती धारा (धारा-16) के उपबन्धों के अधीन जारी किये गये पास के सिवाय आयात, निर्यात या परिवहन नहीं किया जायगा;

प्रतिबन्ध यह है कि विकृत स्प्रिट से भिन्‍न दत्त शुल्क विदेशी शराब की दशा में, ऐसे पासों से अभिमुक्ति दे दी जायेगी, जब तक कि राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा किसी स्थानीय क्षेत्र के सम्बन्ध मे अन्यथा निदेश न दे;

प्रतिबन्ध यह भी है कि जब तक राज्य सरकार अन्यथा निर्देश न दे, किसी ऐसी मादक वस्तु के परिवहन के लिये पास अपेक्षित न होगा जो तदर्थ यथाविधि प्राधिकृत अधिकारी द्वारा जारी किये गये पास के अधीन उत्तर प्रदेश की परिसीमाओं के बाहर किसी अन्य स्थान को निर्यात किया गया हो ।

धारा-16–आयात, निर्यात तथा परिवहन के लिये पासों का दिया जाना 

मादक वस्तुओं के आयात, निर्यात या परिवहन के लिये पास कलेक्टर द्वारा दिये जा सकते हैं।

ऐसे पास निश्चित अवधियों के लिये और निश्चित प्रकार की मादक वस्‍तु के लिये या तो सामान्य प्रकार के हो सकते हैं या केवल निर्दिष्ट अवसरों तथा विशिष्ट परेषणों के लिये विशेष प्रकार के हो सकते हैं।

धारा-17–इस अधिनियम के उपबन्ध के अधीन निर्माण करने के सिवाय मादक वस्तुओं के निर्माण का निषेध

17-(1)-सिवाय कलेक्टर द्वारा तदर्थ दिये गये लाइसेन्स के प्राधिकार और उसके निबन्धनों तथा शर्तों के अधीन रहते हुए—

(क)-कोई भी मादक वस्तु निर्मित न की जायेगी;

(ख)-भांग के पौधे (कैनेविस सैटाइवा) की खेती न की जायेगी;

(ग)-भांग के पौधे (कैनेविस सैटाइवा) के किसी भी ऐसे भाग का, जिससे कोई मादक भेषज निर्मित किया जा सकता हो, संग्रह न किया जायेगा;

(घ) विक्रय के लिये किसी भी शराब को बोतल मे बन्द न किया जायेगा; और

(ङ) कोई भी व्यक्ति ताड़ी से भिन्‍न किसी मादक वस्तु के निर्माण के लिये किसी प्रकार के सामान, भभका, बर्तन, औजार या उपकरण का न तो प्रयोग करेगा, न अपने पास या न कब्‍जे में रखेगा।

(2)-सिवाय धारा 18 के अधीन आबकारी आयुक्त, द्वारा तदर्थ दिये गये लाइसेन्स के प्राधिकार और उसके निबन्धनों तथा शर्तों के अधीन रहते हुए कोई भी आसवनी, यवासवनी अथवा विनिर्माणशाला न तो निर्मित की जायेगी न चलाई जायेगी।

धारा-18–आसवनियों तथा भण्डागारों की स्थापना या उनके लिये लाइसेन्स दिया जाना

आबकारी आयुक्‍त–

(क)-ऐसी आसवनी स्थापित कर सकता है जिसमें धारा 17 के अन्तर्गत दिये गये लाइसेन्स के अधीन स्प्रिट का निर्माण ऐसी शर्तों पर किया जा सकता है जिन्हें राज्य सरकार आरोपित करना उचित समझे।

(ख)-इस प्रकार स्थापित किसी आसवनी को बन्द कर सकता है;

(ग)-किसी आसवनी, यवासवनी अथवा विनिर्माणशाला के निर्माण के लिये तथा उसे चलाने के लिये लाइसेंस ऐसी शर्तों पर जिन्हें राज्य सरकार आरोपित करना उचित समझे, दे सकता है;

(घ)-ऐसा भण्डागार स्थापित कर सकता है या उसके लिये लाइसेन्स दे सकता है जिसमें कोई मादक वस्तु उत्पाद शुल्क का भुगतान किये बिना जमा की जा सकती हो और रखी जा सकती हो; और

()-इस प्रकार स्थापित किसी भण्डागार को बन्द कर सकता है।

धारा-19–आसवनी आदि से मादक वस्तुओ का हटाया जाना

कोई मादक वस्तु इस अधिनियम के अधीन स्थापित किसी आसवनी, यवासवनी, विनिर्माणशाला, भाण्डागार या संग्रह करने के किसी अन्य स्थान से तब तक न हटायी जायगी जब तक कि (अध्याय 5 के अधीन देय) उत्पाद शुल्क (यदि कोई हो ) का भुगतान न कर दिया गया हो या उनके भुगतान के लिये बन्ध-पत्र निष्पादित न कर दिया गया हो।

धारा-20–विहित परिमाण से अधिक परिमाण मे मादक वस्तुओं को सिवाय परमिट के कब्‍जे में रखने का निषेध

20-(1)-कोई भी व्यक्ति जो किसी मादक वस्तु का निर्माण, खेती, संग्रह या विक्रय करने के लिये लाइसेंस प्राप्त न हो, अपने कब्‍जे में कोई मादक वस्तु किसी ऐसे परिमाण से जिसे राज्य सरकार ने धारा-6 के अधीन फुटकर बिक्री की सीमा घोषित की हो, कलेक्टर द्वारा तदर्थ दिये गये परमिट के सिवाय, अधिक परिमाण में नही रखेगा।

(2)- **निरसित

(3)- कोई लाइसेंस प्राप्त विक्रेता अपने लाइसेंस द्वारा प्राधिकृत स्थान से भिन्‍न स्थान में अपने कब्‍जे में कोई मादक वस्तु ऐसे परिमाण से, जिसे राज्य सरकार ने धारा 6 के अधीन फुटकर बिक्री की सीमा घोषित की हो, कलेक्टर द्वारा तदर्थ दिये गये परमिट के सिवाय, अधिक परिमाण में न रखेगा।

(4) **निरसित

20-(ए) **निरसित

20-(बी) **निरसित

धारा-21–लाइसेंस प्राप्त किये बिना मादक वस्तुओं के विक्रय का निषेध

कलेक्टर से लाइसेंस प्राप्त किये बिना किसी मादक वस्तु का विक्रय नहीं किया जायगा; प्रतिबन्ध यह है कि–

(1)-कोई व्यक्ति जिसे धारा 17 के अधीन भांग के पौधे (कैनाबिस सैटाइवा) की खेती करने या उसका संग्रहण करने का लाइसेंस प्राप्त हो, इस पौधे के उन भागों का जिनसे कोई मादक भेषज निर्मित किया जा सकता हो, किसी ऐसे व्यक्ति को जिसे इस अधिनियम के अधीन उसका व्यापार करने का लाइसेंस प्राप्त हो या किसी ऐसे अधिकारी को जिसे आबकारी आयुक्त विहित करे, लाइसेंस के बिना विक्रय कर सकता है।

(2)-उत्तर प्रदेश के एक से अधिक जिलों मे विक्रय करने का लाइसेंस केवल आबकारी आयुक्त द्वारा ही दिया जायगा।

धारा-22–इक्कीस वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों को विक्रय किये जाने का निषेध 

कोई लाइसेन्स प्राप्त विक्रेता और कोई ऐसा व्यक्ति जो ऐसे विक्रेता के सेवायोजन में हो और उसकी ओर से कार्य करता हो, किसी शराब या मादक भेषज को किसी ऐसे व्यक्ति को जो प्रत्यक्षत: इक्कीस वर्ष से कम आयु का हो, चाहे उसके द्वारा या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा उपभोग किये जाने के लिये और चाहे विक्रेता के भू-गृहादि पर या उसके बाहर उपभोग के लिये, न तो बेचेगा और न ही उसे देगा।

धारा-23–इक्कीस वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों को तथा महिलाओं को सेवायोजित करने का निषेध

23-(1)-कोई व्यक्ति जो अपने भू-गृहादि पर उपभोग के निमित्त शराब बेचने के लिये लाइसेंस प्राप्त हो, उन घंटों के दौरान जिनमें ऐसे भू-गृहादि व्यवसाय के लिये खुले रखे जाते हों, ऐसे भू-गृहादि के किसी ऐसे भाग में जिसमें जनसाधारण द्वारा ऐसे शराब या स्प्रिट का उपभोग किया जाता हो, इक्कीस वर्ष से कम आयु के किसी व्यक्ति को या तो पारिश्रमिक सहित अथवा पारिश्रमिक के बिना न तो सेवायोजित करेगा या न सेवायोजित करने की अनुज्ञा देगा।

(2)-कोई व्यक्ति जो अपने भू-गृहादि पर उपभोग के निमित्त विदेशी शराब बेचने के लिये लाइसेंस प्राप्त हो, उन घंटों के दौरान जिनमें ऐसे भू-गृहादि व्यवसाय के लिये खुले रखे जाते हों,आबकारी आयुक्त की लिखित पूर्व अनुज्ञा के बिना ऐसे भू-गृहादि के किसी ऐसे भाग में जिसमें जनसाधारण द्वारा ऐसे शराब या स्प्रिट का उपभोग किया जाता हो, किसी महिला को या तो पारिश्रमिक सहित अथवा पारिश्रमिक के बिना न तो सेवायोजित करेगा या न सेवायोजित करने की अनुज्ञा देगा।

(3)-उपधारा (2) के अधीन दी गयी प्रत्येक अनुज्ञा लाइसेन्स पर पृष्ठांकित की जायेगी और उसे परिष्कृत किया जा सकता है या वापस लिया जा सकता है।

धारा-24–निर्माण आदि के एकान्तिक विशेषाधिकार का दिया जाना 

धारा 31 के उपबन्धों के अधीन रहते हुए आबकारी आयुक्त किसी भी व्यक्ति को किसी स्थानीय क्षेत्र के भीतर किसी देशी शराब या मादक भेषज का–
(1)-निर्माण करने या थोक सम्भरण करने या दोनों ही के लिये, या

(2)-थोक या फुटकर विक्रय के लिये, या

(3) निर्माण करने या थोक सम्भरण करने या दोनों ही के लिये और फुटकर बिक्री के लिये एकान्तिक विशेषाधिकार का लाइसेन्स दे सकता है ।

धारा-24-क– विदेशी शराब के संबंध मे बिक्री करने का एकान्तिक या अन्य विशेषाधिकार देना

(1)-धारा 31 के उपबन्धों के अधीन रहते हुये आबकारी आयुक्त किसी भी व्यक्ति को किसी क्षेत्र में किसी विदेशी शराब का–

(क)-निर्माण करने या थोक सम्भरण करने या दोनों ही के लिये, या

(ख)-निर्माण करने या थोक सम्भरण करने या दोनों ही के लिये और फुटकर बिक्री के लिये, या

(ग)-थोक या फुटकर विक्रेताओं को थोक विक्रेता द्वारा बिक्री के लिये, या

(घ)-दुकानों पर फुटकर बिक्री के लिये (भू-गृहादि के ”अन्‍दर” या ”बाहर” उपभोग के लिये अथवा भू-गृहादि के ”बाहर” उपभोग के लिये) एकान्तिक या अन्य विशेषाधिकार के लिये लाइसेन्स अथवा लाइसेंसों को स्वीकृत कर सकता है।

(2)- किसी क्षेत्र के सम्बन्ध में उपधारा (1) के खण्ड (घ) के अधीन कोई लाइसेन्स या लाइसेंसों के स्वीकृत किये जाने से उसी क्षेत्र में होटलों और रेस्ट्रां में उनके ही भू-गृहादि में उपभोग के निमित्त विदेशी शराब की फुटकर बिक्री के लिये लाइसेन्स के स्वीकृत किये जाने पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।

(3)- जहां उसी अवधि के लिये किसी क्षेत्र के सम्बन्ध में उपधारा (1) के खण्ड (घ) के अधीन एक से अधिक लाइसेन्स, स्वीकृत करने का प्रस्ताव हो वहां प्रत्येक ऐसे लाइसेंसों के लिये भावी प्रार्थियों को प्रस्ताव की अग्रिम सूचना दी जायगी ।

(4)-इस धारा के अधीन एकान्तिक या अन्य विशेषाधिकार के लिये लाइसेंस स्वीकृत किये जाने के सम्बन्ध में धारा 25 और धारा 39 के प्रतिबन्धात्मक खण्ड के उपबन्ध उसी प्रकार लागू होंगें जिस प्रकार वे धारा 24 के अधीन एकान्तिक विशेषाधिकार के लिये कोई लाइसेन्स स्वीकृत किये जाने के सम्बन्ध मे लागू होते हैं।

24-कक

उत्तर प्रदेश आबकारी (संशोधन) अधिनियम, 2018 के प्रकाशन के दिनांक के पूर्व किसी न्यायालय के किसी निर्णय, डिक्री या आदेश के प्रतिकूल होते हुये भी इस अधिनियम के किसी उपबन्ध के अधीन की गई या किये जाने के लिये तात्पर्यित कोई बात तथा की गई अथवा किये जाने हेतु तात्पर्यित कोई कार्यवाही विधिमान्य होगी और उसे सदैव विधिमान्य रही समझी जायेगी मानों इस अधिनियम का उपबन्ध, जैसा कि उक्त अधिनियम द्वारा संशोधित है, सभी सारवान समय पर प्रवत्त था ।

धारा-24-ख– शंकाओं का निवारण

शंकाओं के निवारण के लिये एतद्द्वारा घोषित किया जाता है कि-

(क)-राज्य सरकार को देशी शराब और विदेशी शराब के निर्माण और विक्रय का एकान्तिक अधिकार या विशेषाधिकार है;

(ख)-धारा 41 के खण्ड (ग) में लाइसेंस फ़ीस के रूप में वर्णित धनराशि, राज्य सरकार द्वारा ऐसा अधिकार या विशेषाधिकार स्वीकृत किये जाने के लिये वास्तव मे किराया या प्रतिफल है;

(ग)-राज्य के आबकारी विभाग के अध्यक्ष के रूप में आबकारी आयुक्त को ऐसी फीस अवधारित या वसूल करते समय, राज्य सरकार की ओर से और के लिये कार्य करने वाला समझा जायगा।

धारा-25–सैनिक कैन्टोनमेन्ट्स में शराब निर्माण तथा विक्रय

किसी सैनिक कैन्टोनमेन्ट की परिसीमाओं के भीतर और उन परिसीमाओं से ऐसी दूरी के भीतर जिसे केन्द्रीय सरकार किसी मामले मे विहित करें, शराब के निर्माण या विक्रय के लिये या धारा 24 के अधीन शराब के संबंध मे एकान्तिक विशेषाधिकार के लिये कोई लाइसेंस तब तक न दिये जायेंगे जब तक की समादेशाधिकारी सहमति न दे।

धारा-26–एकान्तिक विशेषाधिकार को गृहीता पट्टे पर उठा सकता है या अभ्यर्पित कर सकता है

अपने लाइसेन्स की शर्तों के अधीन रहते हुये किसी एकान्तिक विशेषाधिकार का गृहीता अपना सम्पूर्ण विशेषाधिकार या उसका कोई भाग पट्टे पर दे सकता है या अभ्यर्पित कर सकता है, किन्तु ऐसे विशेषाधिकार या उसके किसी भाग का कोई पट्टेदार या अभ्यर्पिती किन्हीं अधिकारों का इस प्रकार प्रयोग न करेगा जब तक कि गृहीता द्वारा आवेदन-पत्र दिये जाने पर आबकारी आयुक्त ने उसे कोई ऐसा लाइसेंस न दे दिया हो।

धारा-27–एकान्तिक विशेषाधिकार के गृहीता द्वारा उसको देय धनराशियों की वसूली

यथा-पूर्वोक्त कोई गृहीता पट्टेदार या अभ्यर्पिती अपने अधीन किसी व्यक्ति से गृहीता, पट्टेदार या अभ्यर्पिती के रूप में उसको देय कोई धनराशि इस प्रकार वसूल कर सकता है मानो वह क्षेत्रपति और काश्तकार के सम्बन्ध में तत्समय प्रवृत्त विधि के अधीन वसूल होने योग्य बकाया लगान हो :

प्रतिबन्ध यह है कि इस धारा में दी गई किसी बात से किसी ऐसे गृहीता, पट्टेदार या अभ्यर्पिती के, यथा-पूर्वोक्त किसी ऐसे व्यक्ति से उसे देय कोई ऐसी धनराशि सिविल वाद के जरिये वसूल करने के अधिकार पर प्रभाव न पड़ेगा।

धारा-28–उत्पादशुल्कारोप्य पदार्थों पर उत्पाद शुल्क

28-(1) किसी ऐसे उत्पाद-शुल्कारोप्य पदार्थ पर, यथास्थिति उत्पाद शुल्क या प्रति-शुल्क ऐसी दर या दरों पर जैसा कि राज्य सरकार निर्देश दे, या तो सामान्यतया या किसी निर्दिष्ट स्थानीय क्षेत्र के लिये आरोपित किया जा सकता है–
(क) जो धारा 12 (1) के उपबन्धों के अनुसार आयात किया गया हो; या

(ख) जो धारा 13 के उपबन्धों के अनुसार निर्यात किया गया हो, या

(ग) जिसका परिवहन किया गया हो; या

(घ) जो धारा 17 के अधीन दिये गये किसी लाइसेंस के अन्तर्गत निर्मित किया गया हो , जिसकी खेती की गयी हो या जिसे संग्रहीत किया गया हो; या

(जो धारा 18 के अधीन स्थापित किसी आसवनी या लाइसेंस प्राप्त किसी आसवनी या यवासवनी में निर्मित हो:

प्रतिबन्ध यह है कि —

(1)-उत्पाद-शुल्क किसी ऐसे पदार्थ पर इस प्रकार आरोपित नही किया जायेगा जो भारत मे आयात किया गया हो और इस प्रकार आयातित होने पर इंडियन टैरिफ ऐक्ट-1894 अथवा सी-कस्टम्स ऐक्ट-1878 के अधीन उत्पाद-शुल्क का भागी हो।

(2) * *  निरसित

स्पष्टीकरण–इस धारा के अधीन उत्पाद-शुल्क विभिन्‍न दरों से उन स्थानों के अनुसार जहांं उत्पाद-शुल्कारोप्य पदार्थ उपभोग के लिये ले जाया जाने वाला हो, या ऐसे पदार्थ की परिवर्तनीय सान्द्रता और गुण के अनुसार आरोपित किया जा सकता है।

28-(2)- राज्य सरकार, उपर्युक्त उत्पाद-शुल्क (एक्साइज ड्यूटी) या प्रतिशुल्क (काउन्टर-वेलिंग ड्यूटी) आरोपित करने में और उसकी दर निर्धारित करने में, भारत के संविधान के अनुच्छेद 47 में निर्दिष्ट निदेशक तत्वों का अनुसरण करेगी।

28-(3) ** निरसित

28-(4) **निरसित

धारा-29– वह रीति जिसके अनुसार उत्पाद-शुल्क लगाया जायेगा 

ऐसे नियमों के अधीन रहते हुए जिन्हें आबकारी आयुक्त भुगतान का समय, स्थान और रीति विनियमित करने के लिये विहित करे, ऐसा उत्पाद-शुल्क निम्‍नलिखित एक या एकाधिक प्रकार से लगाया जा सकता है जैसा कि राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा निदेश दे—

(क) धारा 12 (1) के अधीन आयात किये गये उत्पाद शुल्कारोप्य पदार्थों की दशा में:

(1) या तो आयात के प्रान्त मे या निर्यात के प्रान्त या राज्य क्षेत्र में भुगतान करके; या

(2) धारा 18 (घ) के अधीन स्थापित या लाइसेंस प्राप्त भण्डागार से विक्रय के लिये जारी किये जाने पर भुगतान करके;

(ख) धारा 13 के अधीन निर्यात किये गये उत्पाद-शुल्कारोप्य पदार्थों की दशा में या तो निर्यात के प्रान्त में या आयात के प्रान्त या राज्य-क्षेत्र में भुगतान करके;

(ग) परिवहन किये गये उत्पाद-शुल्कारोप्य पदार्थों की दशा में–

(1)-उस जिले में भुगतान करके जहांं से उत्पाद-शुल्कारोप्य पदार्थ का परिवहन किया जाने वाला हो; या

(2)-धारा 18 (घ) के अधीन स्थापित या लाइसेंस प्राप्त भण्डागार से विक्रय के लिये जारी किये जाने पर भुगतान कर के;

(घ) धारा 17 (1) के अधीन दिये गये किसी लाइसेंस के अन्तर्गत निर्मित मादक भेषजों की दशा में–

(1)-धारा 17 (1)(क) के उपबन्धों के अधीन दिये गये लाइसेन्स के अन्तर्गत निर्मित या धारा 18 (घ) के अधीन स्थापित या लाइसेन्स प्राप्त भण्डागार से जारी किये गये परिमाण पर उपशुल्क भारित करके;

(2) जहां कोई मादक भेषज धारा 17 (1) (ख) और (ग) के उपबन्धों के अधीन दिये गये लाइसेन्स के अन्तर्गत खेती किये गये या संग्रहीत भांग (कैनाबिस सैटाइवा ) से निर्मित हो तो खेती के प्रति एकड़ पर उप-शुल्क लगा कर या संग्रहीत मात्रा पर उप-शुल्क भारित करके;

(ङ) धारा 18 के अधीन स्थापित किसी आसवनी में या लाइसेन्स प्राप्त किसी आसवनी, यवासवनी या विनिर्माणशाला से निर्मित स्प्रिट या बियर की दशा में–

(1)-यथास्थिति आसवनी,यवासवनी या विनिर्माणशाला में उत्पादित या उससे जारी किये गये परिमाण पर उप-शुल्क भारित करके;

(2)-यथास्थिति प्रयुक्त सामानों के परिमाण अथवा धोवन या वर्ट के छीजन की मात्रा पर आकलित तुल्यांक के ऐसे मापक्रम के अनुसार जिसे राज्य सरकार विहित करे, उप-शुल्क भारित करके;

प्रतिबन्ध यह है कि यदि भुगतान धारा 18 (घ) के अधीन स्थापित या लाइसेन्स प्राप्त भण्डागार से विक्रय के लिये किसी उत्पाद-शुल्कारोप्य पदार्थ के जारी होने पर किया जाय, तो वह उत्पाद शुल्क की उस दर से होगा जो उस पदार्थ पर उस दिनांक को प्रवृत्त हो जबकि वह भण्डागार से जारी किया जाय।

धारा-30–एकान्तिक विशेषाधिकार के लिये भुगतान

(1)-इस अध्याय के अधीन लगाये जाने वाले किसी उत्पादशुल्क के बजाय या उसके अतिरिक्त, राज्य सरकार या उसकी ओर से आबकारी आयुक्त 24 (क) के अधीन किसी एकान्तिक या अन्य विशेषाधिकार के लिये लाइसेन्स दिये जाने के प्रतिफल स्वरूप किसी राशि का भुगतान स्वीकार कर सकता है।

(2)-उपधारा (1) के अधीन देय धनराशि या तो नीलाम द्वारा या टेंडर आमंत्रित करके या अन्य प्रकार से निश्चित की जा सकती है या लाइसेन्स के अधीन किये गये विक्रय या उठाये गये कोटा के आधार पर निर्धारित की जा सकती है या उपर्युक्त रीतियों से अंशत: निश्चित और अंशत: निर्धारित की जा सकती है।

(3)-विदेशी शराब के थोक विक्रेताओं द्वारा 1 अप्रैल, 1983 को प्रारम्भ होने वाले वित्तीय वर्ष के लिये धारा 24-क के अधीन दिये गये लाइसेन्स के लिये नियत धनराशि के अलावा लाइसेंस के अधीन विक्रय के आधार पर निर्धारित धनराशि जिसे निर्धारित फीस कहा गया है, सभी प्रकार की स्प्रिट, वाइन, शराब और कार्डियल की प्रतिमान्य क्‍वार्ट बोतल पर पांच रूपये की दर और बियर, स्टाउट और अन्य किण्वित शराब की प्रतिमान्य क्‍वार्ट बोतल पर साठ पैसे की दर पर देय होगी।

प्रतिबन्ध यह है कि दिनांक 1 अप्रैल, 2016 से, उत्तर प्रदेश आबकारी (संशोधन) अध्यादेश, 2017 के प्रारम्भ होने के दिनांक तक उदग्रहीत प्रतिफल शुल्क, धारा 28 के अधीन उत्पाद शुल्क समझा जाएगा।

धारा-30-(क)–संविधान के आरम्भ होने के समय लगाये जाने वाले उत्पाद शुल्कों के सम्बन्ध मे अपवाद

(1)-जब तक संसद द्वारा कोई प्रतिकूल व्यवस्था न की जाय, राज्य सरकार कोई ऐसा उत्पाद शुल्क लगाना जारी रख सकती है जिस पर यह धारा लागू होती हो और जिसे वह संविधान के आरम्भ होने के ठीक पूर्व तत्समय प्रवृत्त इस अध्याय के अधीन विधि पूर्वक लगा रही थी।

(2)-उत्पाद -शुल्क, जिन पर यह धारा लागू होती है, निम्‍नलिखित हैं–

(क)- कोई उत्पाद शुल्क जो ऐसी मादक वस्तुओं (या औषधीय या प्रसाधनिक विनिर्मितियों के विषय में हो जिनमें अल्कोहल हो) और जो इस अधिनियम के अर्थान्तर्गत उत्पाद शुल्कारोप्य न हों; और

(ख)-कोई उत्पाद शुल्क जो भारत के बाहर उत्पादित तथा उत्तर प्रदेश मे में आयातित किसी उत्पाद-शुल्कारोप्य पदार्थ के विषय में हो, चाहे वह पदार्थ केन्द्रीय सरकार द्वारा यथापरिभाषित सीमा शुल्क सरहद के पार से आयातित हो अथवा नहीं।

(3) इस धारा की कोई बात राज्य सरकार को कोई ऐसा उत्पाद शुल्क लगाने के लिये प्राधिकृत नही करेगी, जो इस राज्य में उत्पादित या निर्मित सामानों तथा इसी प्रकार के ऐसे सामानों के बीच जो इस प्रकार उत्पादित या निर्मित न किये गये हों, पूर्वोक्त के पक्ष में विभेद करे अथवा जो राज्य के बाहर उत्पादित या निर्मित सामानों की दशा में किसी एक क्षेत्र में निर्मित या उत्पादित सामानों तथा किसी दूसरे क्षेत्र में निर्मित या उत्पादित इसी प्रकार के सामान के बीच विभेद करे।

धारा-31– लाइसेंस आदि के प्रपत्र तथा उनकी शर्तें 

इस अधिनियम के अधीन दिया गया प्रत्येक लाइसेंस, परमिट या पास-

(क) ऐसी फीसों (यदि कोई हो ) का भुगतान करने पर;

(ख) ऐसे निर्बन्धनो और ऐसी शर्तों के अधीन दिया जायेगा;

(ग) ऐसे प्रपत्र में होगा और उसमें ऐसे ब्योरे दिये जायेंगे, जैसा कि आबकारी आयुक्त तदर्थ या तो सामान्यतया या किसी विशेष दशा में निदेश दे; और

(घ) ऐसी अवधि के लिये और उसी रीति से जैसा कि राज्य सरकार निर्देश दे, दिया जायगा।

धारा-32–इस अधिनियम के आरम्भ होने के समय प्रवृत्त लाइसेंस के सम्बन्ध में अपवाद 

ऐसा प्रत्येक लाइसेंस जो एक्साइज ऐक्ट, 1896 की किसी धारा के अधीन दिया गया हो और जो इस अधिनियम के आरम्भ होने के समय प्रवृत्त हो, इस अधिनियम की तदनुरूप धारा के अधीन दिया गया समझा जायगा और (जब तक वह इस अध्याय के अधीन पहले ही रद्द, निलम्बित, वापस या समर्पित न कर दिया गया हो) उस अवधि तक प्रवृत्त रहेगा जिसके लिये वह दिया गया था।

धारा-33–लाइसेंस देने वाले प्राधिकारी की प्रतिरूप अनुबंध आदि के निष्पादन की अपेक्षा करने की शक्ति

इस अधिनियम के अधीन लाइसेंस देने वाला कोई प्राधिकारी लाइसेंस गृहीता से यह अपेक्षा कर सकता है कि वह अपने लाइसेंस की अनुकृति के अनुरूप प्रतिरूप अनुबन्ध निष्पादित करे तथा ऐसे अनुबन्ध के पालनार्थ ऐसी प्रतिभूति दे या प्रतिभूति के बदले में ऐसी धनराशि जमा करे, जैसी कि ऐसा प्राधिकारी उचित समझे।

धारा-34–लाइसेंसों आदि को रद्द या निलंबित करने की शक्ति

(1)-ऐसे निर्बन्धनों के अधीन रहते हुए जिन्हें राज्य सरकार विहित करे, इस अधिनियम के अधीन कोई लाइसेंस, परमिट या पास देने वाला प्राधिकारी उसे रद्द या निलम्बित कर सकता है–

(क) यदि उसके धारक द्वारा देय किसी उत्पाद शुल्क या फीस का यथाविधि भुगतान न किया गया हो; या

(ख) उस दशा में जब ऐसे लाइसेंस, परमिट या पास के धारक द्वारा या उसके सेवकों द्वारा या उसकी अभिव्यक्त या विविक्षित अनुज्ञा से उसकी ओर से कार्य करने वाले किसी व्यक्ति द्वारा ऐसे लाइसेंस, परमिट या पास के निबन्धनों या शर्तों में से किसी निबन्धन या शर्त का उल्लंघन किया गया हो ; या

(ग) यदि उसका धारक इस अधिनियम के अधीन या राजस्व से सम्बन्धित तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन दण्डनीय किसी अपराध का या किसी संज्ञेय तथा अजमानतीय अपराध का (या अनिष्टकर औषधि-द्रव्य अधिनियम 1930 के अधीन ) या मर्चेन्डाइज मार्क्स ऐक्ट, 1889 के अधीन दण्डनीय किसी अपराध का या भारतीय दण्ड संहिता की धारा 482 से 489 तक (दोनो धारायें सम्मिलित करके ) के अधीन दण्डनीय किसी अपराध का सिद्ध-दोष ठहराया गया हो; या

(घ) यदि इस अधिनियम के अधीन किसी एकान्तिक विशेषाधिकार के गृहिता के आवेदन-पत्र पर लाइसेंस, परमिट या पास दिया गया हो, तो ऐसे गृहिता द्वारा लिखित रूप से अधियाचन करने पर; या

(ङ) यदि लाइसेंस या परमिट की शर्तों में इच्छानुसार इस प्रकार रद्द या निलंबित किये जाने की व्यवस्था की गयी हो।

(2)-जब किसी व्यक्ति द्वारा धृत कोई लाइसेंस, परमिट या पास उपधारा (1) के खण्ड (क), (ख) या (ग) के अधीन रद्द किया जाय, तो पूर्वोक्त प्राधिकारी इस अधिनियम के अधीन या आबकारी राजस्व से सम्बन्धित तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन या ओपियम ऐक्ट, 1878 के अधीन राज्य सरकार द्वारा या उसके प्राधिकार से ऐसे व्यक्ति को दिये गये किसी अन्य लाइसेंस, परमिट या पास को रद्द कर सकता है।

(3)-इस धारा के अधीन लाइसेंस आदि के रद्द या निलंबित किये जाने के लिये प्रतिकर या धनराशि के प्रतिदान का दावा न किया जा सकेगा–धारक इस धारा के अधीन अपने लाइसेंस, परमिट या पास के रद्द या निलंबित किये जाने के लिये न तो किसी प्रतिकर के और न ही उसके सम्बन्ध मे भुगतान की गई किसी फीस या जमा की गई किसी धनराशि के प्रतिदान का हकदार होगा।

धारा-35–लाइसेंसों को रद्द करने की अग्रेतर शक्ति

(1)-जब कभी इस अधिनियम के अधीन लाइसेंस देने वाला प्राधिकारी यह समझे कि ऐसा लाइसेंस धारा 34 में निर्दिष्ट कारणों से भिन्‍न किसी कारण से रद्द किया जाना चाहिये, तो वह उसके सम्बन्ध में पन्द्रह दिनों के लिये देय फीस के बराबर राशि प्रेषित करेगा और लाइसेंस को या तो-

(क) ऐसा करने के अपने अभिप्राय की पन्द्रह दिन की लिखित नोटिस की अवधि समाप्त हो जाने पर; या

(ख) बिना नोटिस दिये; तुरन्त ही रद्द कर सकता है।

धारा-36–फुटकर बिक्री के लाइसेंस का समर्पण 

इस अधिनियम के अधीन फुटकर बिक्री के किसी लाइसेंस का धारक लाइसेन्‍स समर्पित करने के अपने अभिप्राय की अपने द्वारा कलेक्टर को दिये गये एक माह की लिखित नोटिस की अवधि व्यतीत हो जाने पर और उस संपूर्ण अवधि के लिये जिसमें लाइसेंस जारी रहता, यदि ऐसा समर्पण न कर दिया गया होता, लाइसेंस के निमित्त देय फीस भुगतान करने पर अपना लाइसेंस समर्पित कर सकता है :

प्रतिबन्ध यह है कि यदि आबकारी आयुक्त को यह समाधान हो जाय कि ऐसा लाइसेंस समर्पित करने के लिये पर्याप्त कारण हैं, तो वह समर्पण कर दिये जाने पर इस प्रकार देय धनराशि या उसका कोई अंश उसके धारक को प्रेषित कर सकता है।

स्पष्टीकरण–इस धारा मे यथाप्रयुक्त शब्द “लाइसेंस का धारक” में वह व्यक्ति भी सम्मिलित है जिसका लाइसेंस के निमित्त टेंडर या बोली स्वीकार हो चुकी हो, यद्यपि उसे वास्तव मे लाइसेंस प्राप्त न हुआ हो।

धारा-36-क–नवीकरण और प्रतिकर अधिकार पर रोक

कोई व्यक्ति जिसे इस अधिनियम के अधीन लाइसेंस दिया गया हो, ऐसे लाइसेंस नवीकरण के लिये कोई दावा न कर सकेगा या न उसे समाप्त किये जाने पर या उसके नवीकृत न किये जाने पर प्रतिकर के लिये दावा कर सकेगा।

धारा-37–लाइसेंस आदि में प्राविधिक अनियमिततायें

(1) इस अधिनियम के अधीन दिया गया कोई लाइसेंस केवल इस कारण अविधिमान्य न समझा जायेगा कि उसमें या उसके दिये जाने से पूर्व की गई किसी कार्यवाही में कोई प्राविधिक दोष, अनियमितता या लोप है।

(2)-प्राविधिक दोष, अनियमितता या लोप क्या है, इस संबंध में आबकारी आयुक्त का निर्णय अन्तिम होगा।

धारा 37-क–मादक वस्तुओं का आयात, निर्यात, परिवहन करने या कब्‍जे में रखने या उसका उपभोग करने का निषेध

धारा 37-क-(1)—उपधारा (4) के उपबन्धों के अधीन रहते हुए उत्तर प्रदेश या उसके किसी भाग में या वहां से किसी मादक वस्तु का आयात या निर्यात या उसका परिवहन निषिद्ध होगा।

धारा 37-क-(2)—धारा 20 में दी गई किसी बात के होते हुये भी किन्तु उपधारा (4) के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, उत्तर प्रदेश या उसके किसी विनिर्दिष्ट क्षेत्र या क्षेत्रों में किसी व्यक्ति या वर्ग विशेष के व्यक्तियों द्वारा या ऐसे अपवादों के, यदि कोई विनिर्दिष्ट किये जायें, अधीन रहते हुए, सभी व्यक्तियों द्वारा, किसी मादक वस्तु को कब्‍जे में रखना या उपभोग करना अप्रतिबद्ध रूप में या ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए जो विनिर्दिष्ट की जायें, निषिद्ध होगा।

धारा-37-क-(3)- राज्य मे मद्य निषेध का क्रमिक प्रसार करने की नीति के अनुसरण में और प्रशासनिक सुविधा को ध्यान में रखते हुए, राज्‍य सरकार निम्‍नलिखित किसी एक या अधिक कारणों को ध्‍यान में रखते हुए, समय-समय पर, इस निमित्त भिन्‍न भिन्‍न क्षेत्रों का चयन कर सकती है; अर्थात् :-

(क) किसी क्षेत्र का स्वरूप, यथा —

(एक)- सरकार का मुख्यालय, या

(दो)-विद्या केन्द्र ,या

(तीन)-तीर्थ या धार्मिक महत्व का स्थान,या

(चार)- पर्वतीय क्षेत्र, या

(पांच)-औद्योगिक क्षेत्र , या

(छ:)-मद्यनिषेध वाले क्षेत्र से लगा हुआ क्षेत्र ,या

(सात)-अनुसूचित जातियों या जन-जातियों की बस्ती, या

(ख)- स्थानीय निवासियों की सामान्य आर्थिक स्थिति जिसके अन्तर्गत उनके आहार पुष्टितल और जीवन स्तर भी हैं, या

(ग)-स्थानीय जनमत; या

(घ)-कोई अन्य संगत तथ्य जो राज्य सरकार की राय में लोकहित में सारवान हो :

प्रतिबन्ध यह है कि इस उपधारा की किसी बात का यह अर्थ नही लगाया जायेगा कि राज्य सरकार से अपने आदेश में उन तथ्यों को, जिनके आधार पर, कोई विशिष्ट क्षेत्र मद्यनिषेध लागू करने के लिये किसी समय चुना जाय, उल्लिखित करना अपेक्षित है।

धारा-37-क-(4)-उपधारा (3) के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, वह क्षेत्र जिसमें उपधारा (1) के अधीन किसी मादक वस्तु के आयात, निर्यात या परिवहन पर, और जिसमें उपधारा (2) के अधीन किसी मादक पदार्थ को कब्‍जे मे रखने या उसका उपभोग करने पर, निषेध का प्रसार किया जाय और वह दिनांक जिससे किसी क्षेत्र में मद्य निषेध प्रवृत्त हो, ऐसा होगा जिसे राज्य सरकार समय-समय पर अधिसूचना द्वारा समय-समय पर विनिर्दिष्ट करे।

धारा-37-क-(5)-किसी मद्यनिषेध क्षेत्र के सम्बन्ध में उपधारा (4) में किसी बात के होते हुए भी राज्य सरकार या तो नियमों द्वारा या सामान्य या विशेष आदेश द्वारा उपधारा (4) के अधीन अधिसूचना में उल्लिखित मादक वस्तुओं को या ऐसी मादक वस्तुओं में से किसी को, निम्‍नलिखित द्वारा या उनके प्रयोजनों के लिये, कब्‍जे में रखने या उसका उपभोग, आयात, निर्यात या परिवहन करने के सम्बन्ध में कोई छूट दे सकती है या शिथिलीकरण कर सकती है :-

(क)-प्रतिरक्षा सेवाओं के सदस्य;

(ख)-मद्यनिषेध क्षेत्र में आने वाले या निवास करने वाले विदेशी;

(ग)-मद्यनिषेध क्षेत्र से गुजरने वाले यात्री;

(घ)-जिला चिकित्सालय या चिकित्सा महाविद्यालय, जिनमें औषधीय प्रयोजनों के लिए कोई मादक वस्तु अपेक्षित हो;

(ङ)-धारा 17,18,21,और 24 के अधीन लाइसेंस धारण करने वाले व्यक्ति;

(च)-रेल , सड़क या वायुयान द्वारा मद्यनिषेध क्षेत्र से, को या होकर गुजरने वाले परेषण;

(छ)-औद्योगिक, वैज्ञानिक, शैक्षिक, औषधीय या धार्मिक प्रयोजन।

धारा-37-क-(6)-किसी ऐसे छूट या शिथिलीकरण के सम्बन्ध में जो उपधारा (5) के अधीन दी जाय, राज्य सरकार या तो नियमों द्वारा या सामान्य या विशेष आदेश द्वारा ऐसे प्राधिकारी द्वारा जो विनिर्दिष्ट किया जाय, पास या परमिट दिये जाने की व्यवस्था कर सकती है।

धारा-37-क-(7)-उपधारा (4) में अभिदिष्ट अधिसूचना जारी कर दिये जाने पर इस अधिनियम के अधीन लाइसेंस देने वाला प्राधिकारी लाइसेंस को, जहां तक उसका सम्बन्ध मद्यनिषेध क्षेत्र से है, बिना नोटिस तुरन्त निरस्त कर सकता है और वह तदुपरान्त लाइसेन्स की असमाप्त अवधि के सम्बन्ध में देय शुल्क की धनराशि के बराबर धनराशि की छूट देगा और उसके सम्बन्ध में लाइसेंसधारी द्वारा अग्रिम रूप से दिये गये किसी शुल्क या जमा की गई धनराशि को, उसमें से राज्य सरकार को देय धनराशि, यदि कोई हो, घटाकर लौटा देगा, किन्तु लाइसेंसधारी को ऐसे निरसन के सम्बन्ध में धारा 35 में दी गई किसी बात के होते हुए भी कोई प्रतिकर देय न होगा।

धारा-37-क-(8)-जहां उपधारा (7) के अधीन कोई लाइसेंस निरस्त किया जाय वहां लाइसेंसधारी अपने कब्‍जे की मादक वस्तुओं का निस्तारण उस प्रकार करेगा जैसा राज्य सरकार या आबकारी आयुक्त सामान्य या विशेष आदेश द्वारा निर्देश दें :
प्रतिबन्ध यह है कि 1 मई, 1972 को प्रारम्भ होने वाली और 25 जून, 1978 के साथ समाप्त होने वाली अवधि मे किया गया ऐसा कोई कार्य या ऐसी कोई चूक मूल अधिनियम के अधीन दण्डनीय कोई अपराध होगी , जो यदि ऐसा कोई प्रतिस्थापन न किया जाता तो कोई अपराध न होती।

धारा-38–माप, बाट तथा परीक्षण यंत्र

प्रत्येक व्यक्ति जो इस अधिनियम के अधीन दिए गए लाइसेन्स के अधीन कोई मादक वस्तु निर्मित करता है या उसका विक्रय करता है–

(क) ऐसे माप, बाट या यन्त्र जिन्हें आबकारी आयुक्त विहित करे, की स्वयं व्यवस्था करने और उन्हे अच्छी दशा में रखने; और

(ख) यदि ऐसे माप, बाट तथा यन्त्र विहित किए गए हों, तो तदर्थ यथाविधि अधिकृत किसी आबकारी अधिकारी द्वारा अधियाचन किए जाने पर किसी भी समय ऐसी मादक वस्तु का जो उसके कब्‍जे में हो, ऐसी रीति से माप लेने, तौल लेने या उसे परीक्षित करने, जैसा कि उक्त आबकारी अधिकारी अपेक्षा करे;

के लिए बाध्य होगा।

धारा-38-क–आबकारी राजस्व के बकाया पर ब्याज 

(1)-जहां किसी आबकारी राजस्व का भुगतान उसके देय होने के दिनांक के तीन मास के भीतर न किया गया हो, वहां चौबीस प्रतिशत प्रति वर्ष से अनधिक दर पर, जैसी विहित की जाय, ब्याज ऐसे आबकारी राजस्व के देय होने के दिनांक से वास्तविक भुगतान के दिनांक तक देय होगा;

प्रतिबन्ध यह है कि जब तक कोई उच्च दर विहित न की जाय, ब्याज की दर अट्ठारह प्रतिशत प्रतिवर्ष होगी;

अग्रतर प्रतिबन्ध यह है कि ऐसे आबकारी राजस्व के सम्बन्ध में, जो उत्तर प्रदेश आबकारी (संशोधन) अधिनियम, 1985 के प्रारम्भ होने के पूर्व देय हो गया हो, उक्त दर पर ब्याज ऐसे प्रारम्भ के दिनांक से तीन मास के भीतर न किया जाय।

स्पष्टीकरण —

इस उपधारा की किसी बात का यह अर्थ नही लगाया जायेगा कि उससे किसी करार, नीलामी के निबन्धनों या उत्तर प्रदेश आबकारी (संशोधन) अधिनियम, 1985 के प्रारम्भ के दिनांक के पूर्व दायर किये गये वादों या कार्यवाहियों में न्यायालय की किसी डिक्री जो उक्त दिनांक के पूर्व पारित की गयी हो या उक्त दिनांक के पश्चात पारित की जाय, के अधीन ब्याज के भुगतान पर प्रभाव पड़ता है ।

(2)-ऐसे ब्याज की वसूली पर धारा 39 के उपबन्ध, यथावश्यक परिवर्तन सहित उसी प्रकार लागू होंगें जिस प्रकार के आबकारी राजस्व की वसूली पर लागू होते हैं।

धारा-39–आबकारी राजस्व की वसूली 

सम्पूर्ण आबकारी राजस्व जिसमें वे धनराशियां भी सम्मिलित हैं, जो आबकारी राजस्व से सम्बन्धित किसी संविदा के कारण किसी व्यक्ति द्वारा सरकार को देय हों, उस व्यक्ति से जो प्रथमत: उसे भुगतान करने का जिम्‍मेदार हो या उसके प्रतिभू से (यदि कोई हो) भू-राजस्व के बकाया के रूप में या तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा लोक मांगो की वसूली के लिये व्यवस्थित रीति से वसूल किया जा सकता है। लाइसेन्स धारक द्वारा भुगतान करने में चूक किए जाने की दशा में कलेक्टर उस प्रदान को जिसके लिये लाइसेन्स दिया गया है, भुगतान में चूक करने वाले के जोखिम पर प्रबन्ध में ले सकता है या उसको जब्‍त घोषित कर सकता है और भुगतान में चूक करने वाले व्यक्ति के जोखिम तथा हानि पर उसको पुन: विक्रय कर सकता है। जब कोई प्रदान इस धारा के अधीन प्रबन्धाधीन हो, तो कलेक्टर भुगतान करने में चूक करने वाले व्यक्ति के किसी पट्टेदार या अभ्यर्पिती द्वारा देय कोई भी धनराशियां आबकारी राजस्व के रूप मे वसूल सकता है;

प्रतिबन्ध यह है कि धारा 24 के अधीन दिए गए किसी एकान्तिक विशेषाधिकार का लाइसेन्स, लाइसेन्स देने वाले प्राधिकारी की स्वीकृति के बिना न तो जब्‍त किया जायगा और न इसका पुन: विक्रय किया जायगा।

धारा-40–राज्य सरकार की नियम बनाने की शक्ति 

(1)-राज्य सरकार इस अधिनियम के या आबकारी राजस्व सम्बन्धित तत्समय प्रवृत्त अन्य विधि के उपबन्धों को क्रियान्वित करने के लिये नियम बना सकती है :

प्रतिबन्ध यह है कि यह समझा जायेगा कि इस अधिनियम के प्रारम्‍भ के पूर्व, राज्य सरकार की पूर्व स्वीकृति से, आबकारी आयुक्त, उत्तर प्रदेश, द्वारा बनाई गई उत्तर प्रदेश सरचार्ज शुल्क प्रणाली के अन्तर्गत अनुज्ञापन नियमावली, 1968, जैसा कि वह समय-समय पर आबकारी आयुक्त, उत्तर प्रदेश द्वारा संशोधित की गई है, जब तक कि राज्य सरकार इस धारा के अधीन उसका परिवर्तन, निरसन या संशोधन न करे, उसी प्रकार विधिमान्य और प्रभावी है और सर्वदा रही है, मानो उक्त नियमावली राज्य सरकार के द्वारा इस धारा के अधीन विधिवत बनायी गयी हो।

(2)-विशेषत: और पूर्ववर्ती उपबन्ध की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, राज्य सरकार निम्‍नलिखित के लिए नियम बना सकती है–

(क)-धारा 10 (2) (ज) के अधीन आबकारी आयुक्त या कलेक्टर द्वारा किन्हीं शक्तियों के प्रतिनिहित किये जाने को विनियमित करने के लिये ;

(ख)- आबकारी विभाग के अधिकारियों की शक्तियों तथा कर्तव्यों को विहित करने के लिये;

(ग)-अपील या पुनरीक्षण प्रस्तुत करने के लिये रीति और ऐसे अपील और पुनरीक्षण निस्तारण की प्रक्रिया विहित करना;

(घ)-किसी मादक वस्तु के आयात, निर्यात, परिवहन या उसे कब्‍जे में रखने के लिये विनियमित करने के लिये;

(ङ)- उन अवधियों तथा क्षेत्रों को, जिनके लिये तथा उन व्यक्तियों को, जिन्हें किसी मादक वस्तु के थोक या फुटकर विक्रय के लिये लाइसेंस दिया जाय, विनियमित करने के लिये ;

(च)- किसी क्षेत्र के निमित्त ऐसे विक्रय का कोई लाइसेंस दिये जाने से पूर्व अनुसरित की जाने वाली प्रक्रिया तथा सुनिश्चित किये जाने वाले विषयों को विहित करने के लिये;

(छ)-किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के किसी वर्ग को किसी मादक वस्तु का विक्रय करने का निषेध करने के लिये;

(ज)-साक्षियों को खर्चा देने और समय की हानि के लिए उन व्यक्तियों को, जो धारा 49 के अधीन इस आधार पर छोड़े गए हों कि उन्हें अनुचित रूप से गिरफ्तार किया गया था और उन व्यक्तियों को, जिन पर मजिस्ट्रेट के समक्ष इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय अपराधों का आरोप लगाया गया हो, किन्तु वो दोषमुक्त हो गये हों, प्रतिकर देने के लिए;

(झ)-धारा 49 के उपबन्धों के अधीन दूर से साक्षियों को आहूत करने की आबकारी अधिकारियों की शक्ति को विनियमित करने के लिए;

(ञ)-उन आबकारी अधिकारियों को, जिन्हें तथा उस रीति को, जिसके अनुसार धारा 56 के अधीन सूचना या सहायता दी जानी चाहिए, घोषित करने के लिए;

(ट)-अपने व्यवसाय में किसी भी हैसियत से सहायता देने के लिए किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के किसी वर्ग को लाइसेन्स धारक द्वारा सेवायोजित किए जाने का निषेध करने के लिए;

(ठ)-लाइसेन्स प्राप्त किसी भू-गृहादि में या उसके समीप नशे मे रहने, जुआ खेलने और उत्पाती आचरण करने को और ऐसे भू-गृहादि में दुश्‍चरित्र व्यक्तियों के एकत्र होने या रहने को रोकने के लिए ;

(ड)-अधिनियम के अधीन वसूल की गई शमन फीस में से उसके पचास प्रतिशत तक कलेक्टर द्वारा, और वसूल किए गए अर्थदण्ड में से उसके पचास प्रतिशत तक मामले पर विचारण करने वाले मजिस्ट्रेट द्वारा, अधिकारिकों, अधिकारियों या इत्तिला देने वालों को इनाम देने के लिये।

(3) *निरसित

धारा-41–आबकारी आयुक्त की नियम बनाने की शक्ति

आबकारी आयुक्त, राज्य सरकार की पूर्व स्वीकृति के अधीन रहते हुए, निम्‍नलिखित के लिए नियम बना सकता है–

(क)-किसी मादक वस्तु के के निर्माण, सम्भरण, भण्डारण या विक्रय को, जिसमें निम्‍नलिखित सम्मिलित हैं, विनियमित करना–

(1)-ऐसे पदार्थ के निर्माण, सम्भरण, भण्डारण या विक्रय के लिए किसी स्थान का परिनिर्माण करना, उसमें परिवर्तन करना, उसकी मरम्मत करना, उसका निरीक्षण, पर्यवेक्षण, प्रबन्ध करना और उस पर नियंत्रण रखना तथा उसमें अनुरक्षित किये जाने वाले उपस्कर, औजार और उपकरण;

(2)-भांग के पौधे (कैनाबिस सैटाइवा) की खेती करना;

(3)-भांग के पौधे (कैनाबिस सैटाइवा) के उन भागों का संग्रहण करना जिनसे कोई मादक भेषज निर्मित किया जा सकता हो और उनसे किसी मादक भेषज का निर्माण करना;

(ख)-किसी मादक वस्तु को भण्डागार मे जमा किये जाने को और किसी भण्डागार से या किसी आसवनी, यवासवनी या विनिर्माणशाला से किसी मादक वस्तु के हटाये जाने को विनियमित करना;

(ग)-किसी मादक वस्तु के किसी लाइसेंस, परमिट या पास के लिये जिसमें धारा 24 या धारा 24-क के अधीन किसी एकांतिक या अन्य विशेषाधिकार के लिये दिया गया कोई प्रतिफल भी सम्मिलित है, या उसके भण्डारण के लिये देय फीस का माप-मान या उसे निश्चित करने की रीति विहित करना;

प्रतिबन्ध यह है कि इस खण्ड की किसी बात का यह अर्थ नही लगाया जायगा कि यह राज्य सरकार को समय समय पर अधिसूचना द्वारा कोई ऐसा विशेषाधिकार स्वीकृत किये जाने के प्रतिफल के भाग के रूप में कोई फीस, जिसके अन्तर्गत विक्रय (वेण्ड) फीस भी है, लगाने से रोकती है।

स्पष्टीकरण-

(1) विभिन्‍न वर्गों के लाइसेंस, परमिट, पास या भण्डारण के लिये, और विभिन्‍न क्षेत्रों के लिये इस उपखण्ड के अधीन फीस विभिन्‍न दरों पर विहित की जा सकती है।

(2) ऐसी फीस या प्रतिफल निश्चित करने की रीति के अन्तर्गत निम्‍नलिखित कोई एक या अधिक रीति भी है, अर्थात-

(1)- नीलाम

(2)- टेण्डर आमंत्रित करना

(3)- लाइसेंस, परमिट या पास के अधीन किये गये विक्रय या उठाये गये कोटा के आधार पर निर्धारण।

(घ)- किसी उत्पाद शुल्क या फ़ीस के भुगतान का समय, स्थान और रीति को विनियमित करना;

(ङ)-उन निर्बन्धनो को, जिनके अधीन तथा उनकी शर्तों को जिनके अनुसार कोई लाइसेंस, परमिट या पास दिया जा सकता है, जिनमें निम्‍नलिखित विषयों के लिये व्यवस्था सम्मिलित है, विहित करना–

(1) किसी मादक वस्तु के साथ किसी ऐसी वस्तु को, जो दुर्गन्धयुक्त और आपत्तिजनक समझी जाय, सम्मिश्रित करने का निषेध करना;

(2)- किसी लाइसेंस प्राप्त निर्माता या लाइसेंस प्राप्त विक्रेता द्वारा किसी शराब की उच्च सान्द्रता को कम करके उसे निम्‍न सान्द्रता का बनाने को विनियमित करना या उसका निषेध करना;

(3)- उस सान्द्रता , मूल्य या परिमाण को जिससे अधिक या कम किसी मादक वस्तु का विक्रय या सम्भरण न किया जायेगा तथा उस परिमाण को जिससे अधिक विकृत स्प्रिट कब्‍जे में न रखी जा सकेगी, निश्चित करना तथा किसी मादक वस्तु के गुण का मानदण्ड विहित करना;

(4)-नगद विक्रय के सिवाय अन्यथा विक्रय का निषेध करना;

(5)-उन दिनों या घंटों को निश्चित करना जिनमें कोई लाइसेंस प्राप्त भू-गृहादि खुले रखे जायें या खुलें न रखे जायें और ऐसे भू-गृहादि को विशेष अवसरों पर बन्द रखना;

(6)-उन भू-गृहादि के स्वरूप का विशिष्ट विवरण जिनमें किसी मादक वस्तु का विक्रय किया जाय तथा ऐसे भू-गृहादि में प्रदर्शित किये जाने वाले नोटिस ;

(7)- लाइसेंस धारकों द्वारा रखे जाने वाले लेखों का प्रपत्र तथा उनके द्वारा प्रस्तुत की जाने वाली विवरणियां; और

(8)- लाइसेंसों के अन्तरण का विनियमन।

(च)-(1)-उस प्रक्रिया को घोषित करना जिसके अनुसार भारत मे निर्मित स्प्रिट विकृत की जायेगी;

(2)-अपने अधिकारियों के अनुकरण द्वारा या उसके पर्यवेक्षण में ऐसी स्प्रिट को विकृत कराना;

(3)-यह सुनिश्चित करना कि ऐसी स्प्रिट विकृत की गई है या नहीं;

(छ)-किसी ऐसे मादक वस्तु को, जो प्रयोग के लिये अयोग्य समझी जाय, नष्ट करने की या अन्य प्रकार से उसके निस्तारण की व्यवस्था करना ;

(ज)-जब्‍त किये गये पदार्थों के निस्तारण को विनियमित करना।

धारा-42– ताड़ी का निर्माण

सिवाय इस लाइसेन्स के प्राधिकार तथा उसके निबन्धनों और शर्तों के अधीन रहते हुए जो कलेक्टर द्वारा तदर्थ या धारा 45 के उपबन्धों के अधीन दिया जाय, उन स्थानीय क्षेत्रों में जहां राज्य सरकार इस प्रकार अधिसूचित करें–

(क)-ताड़ी पैदा करने वाला कोई वृक्ष छिद्रित न किया जायगा;

(ख)-किसी वृक्ष से ताड़ी न निकाली जायगी ;

प्रतिबन्ध यह है कि किसी ऐसे स्थानीय क्षेत्र में राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा यह घोषित कर सकती है कि ये उपबन्ध उन वृक्षों पर लागू न होंगें जो ऐसी विशेष दशाओं में, जो आबकारी आयुक्त द्वारा विहित की जायें, छिद्रित किये गये हों या जिनसे ताड़ी निकाली गयी हो।

धारा-43–ताड़ी का विक्रय

यथापूर्वोक्त किसी ऐसे क्षेत्र में कोई ऐसा व्यक्ति जिसे किसी वृक्ष से निकाली गयी ताड़ी का अधिकार प्राप्त हो उस ताड़ी का बिना लाइसेंस के विक्रय ऐसे व्यक्ति को कर सकता है जिसे इस अधिनियम के अधीन ताड़ी का निर्माण करने या विक्रय करने का लाइसेंस प्राप्त हो।

धारा-44–धारा 42 के उपबन्धों से उस क्षेत्र को जिसमें ताड़ी के निर्माण आदि के लिये एकान्तिक विशेषाधिकार दिया गया हो, विमुक्त करने की राज्य सरकार की शक्ति

यदि धारा 24 के उपबन्धों के अधीन किसी स्थानीय क्षेत्र में ताड़ी निर्मित करने, सम्भरित करने या उसका विक्रय करने के लिये एकान्तिक विशेषाधिकार का लाइसेंस दिया गया हो तो राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा यह निर्देश दे सकती है कि धारा 42 के उपबन्ध ऐसे क्षेत्र पर लागू न होंगे।

धारा-45–ताड़ी के निर्माण के लिये एकान्तिक विशेषाधिकार गृहीता द्वारा लाइसेंस दिया जाना

यदि धारा 24 के अधीन ताड़ी के निर्माण के लिये एकान्तिक विशेषाधिकार का लाइसेंस दिया गया हो, तो राज्य सरकार यह घोषित कर सकती है कि ताड़ी निकालने के लिये लाइसेंस गृहीता की लिखित अनुज्ञा का वही बल और प्रभाव होगा जो धारा 42 के अधीन कलेक्टर द्वारा इस प्रयोजन के लिये दिये लाइसेंस का हो।

धारा-46–ताड़ी पर उत्पाद शुल्क

धारा 42 के अधीन दिये गये किसी लाइसेंस के अधीन निर्मित किसी ताड़ी पर कोई उत्पाद-शुल्क ऐसी दर या दरों पर जैसा कि राज्य सरकार निदेश देगी, या तो सामान्यतया या किसी निर्दिष्ट स्थानीय क्षेत्र के लिये लगाया जा सकता है। ऐसा शुल्क प्रत्येक छिद्रित वृक्ष पर या उस वृक्ष पर जिससे ताड़ी निकाली जाय, कर द्वारा लगाया जायगा और धारा 28 का उप-धारा (2) मे निर्दिष्ट सिद्धान्तों को ध्यान में रखते हुए निश्चित की जायेगी और प्रति वृक्ष एक वर्ष या उसके भाग के लिये साठ रूपये से अधिक न होगा।

धारा-47– नियम बनाने की शक्ति

विशेषत: तथा पूर्ववर्ती उपबन्धों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, राज्य सरकार किसी ऐसे क्षेत्र में जिसमें धारा 42 के उपबन्ध लागू किये गये हों, ताड़ी पैदा करने वाले वृक्षों के छिद्रण और ऐसे वृक्षों से ताड़ी निकालने, ऐसे वृक्षों को चिन्हित करने और ऐसे चिन्हों के अनुरक्षण को विनियमित करने के लिये नियम बना सकती है।

धारा-48–निर्माण के तथा विक्रय के स्थानों मे प्रवेश तथा उनका निरीक्षण करने की शक्ति

आबकारी आयुक्त या कलेक्टर, या आबकारी विभाग का कोई अधिकारी जो उस पंक्ति से निम्‍न पंक्ति का न हो जिसे राज्य सरकार विहित करे, या यथाविधि तदर्थ अधिकृत कोई पुलिस अधिकारी किसी ऐसे स्थान में जिसमें कोई लाइसेंस प्राप्त निर्माणकर्ता किसी मादक वस्तु का निर्माण करता हो या उसका भण्डारण करता हो, किसी भी समय दिन अथवा रात्रि मे प्रवेश कर सकता है और उसका निरीक्षण कर सकता है और किसी ऐसे स्थान में जिसमें किसी लाइसेंस प्राप्त व्यक्ति द्वारा कोई मादक वस्तु विक्रय के लिये रखी जाती हो, ऐसे घण्टों के भीतर जब विक्रय करने की अनुज्ञा हो तथा किसी अन्य समय मे, जब वह खुला हो, किसी भी समय प्रवेश कर सकता है और उसका निरीक्षण कर सकता है और ऐसे स्थान में पाये गये किन्हीं सामानों, भभकों, बर्तनों, औजारों, उपकरणों या मादक वस्तु की जांच कर सकता है, परीक्षण कर सकता है, माप ले सकता है या तौल सकता है और किन्हीं ऐसे मापों, बांटों या परीक्षण यन्त्रों का, जिनके सम्बन्ध में उसे यह विश्‍वास करने का कारण हो कि वे खोटे हैं, अभिग्रहण कर सकता है।

धारा-49–इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय अपराधों का अन्वेषण करने की कतिपय अधिकारियों की शक्तियां

(1)-कोई पुलिस अधिकारी जो पंक्ति में किसी उप निरीक्षक से निम्‍न पंक्ति का न हो तथा आबकारी विभाग का कोई अधिकारी जो उस पंक्ति से निम्‍न पंक्ति का न हो जिसे राज्य सरकार विहित करे, इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय किसी ऐसे अपराध का अन्वेषण कर सकता है जो उस क्षेत्र की परिसीमाओं के भीतर किया गया हो जिसमें ऐसा अधिकारी क्षेत्राधिकार का प्रयोग करता हो।

(2)-कोई ऐसा अधिकारी ऐसे अन्वेषण के सम्बन्ध में उन्हीं शक्तियों का प्रयोग कर सकता है जिसका थाने का प्रभारी अधिकारी दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अध्याय 12 के उपबन्धों के अधीन किसी संज्ञेय मामले में प्रयोग कर सकता है और यदि ऐसा अधिकारी राज्य सरकार द्वारा तदर्थ विशेष रूप से अधिकृत किया गया हो तो वह बिना किसी मजिस्ट्रेट को अभिदेश किये और उन कारणों से जिन्हें वह लिखित रूप से अभिलिखित करे, किसी ऐसे व्यक्ति के विरूद्ध अग्रेतर कार्यवाही रोक सकता है जो इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय किसी ऐसे अपराध से, जिसके सम्बन्ध में उसने अन्वेषण किया हो।

धारा-50–गिरफ्तार करने, अभिग्रहण करने और निरूद्ध करने की शक्तियां

आबकारी, पुलिस, नमक, अफीम या भू राजस्व विभाग का कोई भी अधिकारी, जो उस पंक्ति से निम्‍न पंक्ति का न हो जिसे और ऐसे निर्बन्धनो के अधीन रहते हुये जिन्हें राज्य सरकार विहित करे और यथाविधि तदर्थ अधिकृत कोई अन्य व्यक्ति बिना वारण्ट के किसी ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है जो धारा 60, धारा 60 (क), धारा 62, धारा 63 या धारा 65 के अधीन दण्डनीय अपराध करता हुआ या उसके लिये दुष्प्रेरित करता हुआ पाया जाय और किसी ऐसे मादक वस्तु को या किसी अन्य सामान को अभिगृहीत और निरूद्ध कर सकता है जिसके सम्बन्ध मे उसे यह विश्वास करने का कारण हो कि वह इस अधिनियम के या आबकारी राजस्व से सम्बन्धित तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन जब्‍त किये जाने योग्य है; और किसी ऐसे व्यक्ति को और किसी ऐसे जलयान, गाड़ी, पशु, संवेष्ठन, पात्र या आवरण को निरूद्ध कर सकता है और उसकी तलाशी ले सकता है जिस पर या जिसमें उसे ऐसे सामान के होने का संदेह करने का उचित कारण हो।

धारा-51–गिरफ्तारी का वारण्ट जारी करने की कलेक्टर की शक्ति

कलेक्टर किसी ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिये वारण्ट जारी कर सकता है जिसके सम्बन्ध में उसे यह विश्वास करने का कारण हो कि उसने धारा 60, धारा 60(क), धारा 62, धारा 63 या धारा 65 के अधीन कोई अपराध किया या उसके लिये दुष्प्रेरित किया है।

धारा-52–तलाशी का वारण्ट जारी करने की कलेक्टर या मजिस्ट्रेट की शक्ति

यदि प्राप्त सूचना के आधार पर कलेक्टर या मजिस्ट्रेट को यह विश्वास करने का कारण हो कि धारा 60, धारा 60(क), धारा 62, धारा 63 या धारा 65 के अधीन कोई दण्डनीय अपराध किया गया है या किये जाने की संभावना है, तो वह किसी ऐसी मादक वस्तु, सामान, भभका, बर्तन, औजार या उपकरणों की तलाशी के लिये वारण्ट जारी कर सकता है, जिसके सम्बन्ध में अभिकथित अपराध किया गया हो या किये जाने की सम्भावना हो।

धारा-53– बिना वारण्ट के तलाशी लेने की कलेक्टर या आबकारी विभाग के अधिकारी की शक्ति

(1)-जब कभी कलेक्टर को या आबकारी विभाग के ऐसे अधिकारी को जो उस पंक्ति से निम्‍न पंक्ति का न हो जिसे राज्य सरकार विहित करे या ऐसे पुलिस अधिकारी को जो पंक्ति में उपनिरीक्षक से निम्‍न पंक्ति का न हो, यह विश्वास करने का कारण हो कि धारा 60,धारा-60 क, धारा 61, धारा 62, धारा 63 या धारा 65 के अधीन दण्डनीय कोई अपराध किसी स्थान में किया गया है, किया जा रहा है या किये जाने की सम्भावना है और अपराधी को भाग जाने या अपराध का साक्ष्य छिपाने का अवसर दिये बिना तलाशी का वारन्ट प्राप्त नहीं किया जा सकता है, तो वह किसी भी समय, दिन अथवा रात्रि में, ऐसे स्थान में प्रवेश कर सकती है और उसकी तलाशी ले सकता है:

प्रतिबन्ध यह है कि कलेक्टर से भिन्‍न कोई अधिकारी जो इस उपधारा के अधीन कार्यवाही करे, ऐसे स्थान मे प्रवेश करने से पूर्व यथापूर्वोक्त अपने विश्वास के कारणों को अभिलिखित करेगा।

(2)-अभिग्रहण करने, निरूद्ध करने, तलाशी लेने और गिरफ्तार करने की अग्रेतर शक्तियां–यथापूर्वोक्त कलेक्टर या अन्य अधिकारी ऐसे स्थान में पाई गई किसी ऐसी वस्तु को अभिगृहीत कर सकता है जिसके सम्बन्ध में उसे यह विश्वास करने का कारण हो कि वह इस अधिनियम के अधीन जब्त किये जाने योग्य है तथा ऐसे स्थान में पाये किसी ऐसे व्यक्ति को निरूद्ध कर सकता है तथा उसकी तलाशी ले सकता है और वह उचित समझे तो, उसे गिरफ्तार कर सकता है जिसके सम्बन्ध में उसे यह विश्वास करने का कारण हो कि वह यथापूर्वोक्त अपराध का दोषी है।

धारा-54–गिरफ्तारी, तलाशियों आदि के सम्बन्ध में प्रक्रिया 

गिरफ्तारियों, तलाशियों, तलाशी के वारन्टों, गिरफ्तार किये गये व्यक्तियों को प्रस्तुत करने तथा अपराधों का अन्वेषण करने के सम्बन्ध में दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 के उपबन्ध इस अधिनियम के अधीन उनके सम्बन्ध में की गई समस्त कार्यवाहियों पर यथाशक्य लागू होंगें :

प्रतिबन्ध यह है कि धारा-60 ,धारा 60-क, धारा 61 ,धारा 62, धारा 63, धारा 64-क, धारा 65, धारा 68 के अधीन दण्डनीय किसी अपराध अथवा उक्त धाराओं के अधीन किसी अपराध के दुष्प्रेरण के लिए दण्डनीय किसी अपराध का अन्वेषण बिना किसी मजिस्ट्रेट के आदेश से किया जा सकता है और यह कि धारा 51 अथवा धारा 52 के अधीन कलेक्टर द्वारा जारी किये गये किसी वारन्ट का निष्पादन किसी ऐसे अधिकारी द्वारा किया जा सकता है जिसे कलेक्टर द्वारा उक्त प्रयोजन के लिये प्राधिकृत किया जाय।

धारा-55–कतिपय अपराध अजमानतीय होंगें

धारा 60 की उपधारा (2), धारा 60(क), धारा 62, धारा 63,धारा  64-क और उक्‍त धाराओं के अधीन किसी अपराध के दुष्प्रेरण के लिए दण्डनीय कोई अपराध दण्ड प्रक्रिया संहिता-1973 के अर्थान्तर्गत अजमानतीय होगा।

धारा-56–आबकारी विभाग के अधिकारियों को अपराधों की सूचना देने तथा उनकी सहायता करने का कतिपय विभागों के अधिकारियों का कर्तव्य

पुलिस, नमक, अफीम तथा भू राजस्व विभाग का प्रत्येक अधिकारी आबकारी विभाग के अधिकारी को इस अधिनियम के उपबन्धों में से किसी उपबन्ध के ऐसे समस्त उल्लंघनों की जो उसकी जानकारी में आयें, तुरन्त सूचना देने के लिये और ऐसे अधिकारी द्वारा निवेदन किये जाने पर इस अधिनियम के उपबन्धों को कार्यान्वित करने में आबकारी विभाग के किसी अधिकारी की सहायता करने के लिये बाध्य होगा।

धारा-57–स्वामी, अध्यासी, लेखपाल या ग्राम्य पुलिस, कर्मचारियों का कुछ बातों की सूचना देने का कर्तव्य

प्रत्येक व्यक्ति जिसके स्वामित्व अथवा अध्यासन में कोई ऐसी भूमि या भवन हो जिस पर या जिसमें किसी मादक वस्तु का कोई अवैध निर्माण हुआ हो, किन्हीं ऐसे पौधों की कोई अवैध खेती या संग्रहण हुआ हो जिनसे मादक भेषज तैयार किया जा सकता हो और ऐसे स्वामी या अध्यासी का अभिकर्ता, और किसी ऐसे जलयान या गाड़ी का, जिसमें इस अधिनियम के उपबन्धों के प्रतिकूल किसी मादक वस्तु का निर्माण किया जाय, प्रत्येक स्वामी, और प्रत्येक लेखपाल अथवा ग्राम्य पुलिस कर्मचारी जिसके अधिकार क्षेत्र में ऐसी भूमि या भवन स्थित हो अथवा जलयान या गाड़ी पायी जाय, तत्सम्बन्धी सूचना जानकारी में आने पर, सिवाय उस दशा में जब उसके द्वारा ऐसा न करने के लिए उचित कारण हो, तुरन्त ही किसी मजिस्ट्रेट या आबकारी , पुलिस अथवा राजस्व विभाग के किसी अधिकारी को देने के लिए बाध्य होगा।

धारा-58–थाने के प्रभारी अधिकारी का अभिगृहीत सामानों को प्रभार में लेने का कर्तव्य

थाने का प्रत्येक प्रभारी अधिकारी इस अधिनियम के अधीन अभिगृहीत समस्त सामानों को जो उसे दिये जायें, किसी मजिस्ट्रेट या कलेक्टर का आदेश होने तक अपने प्रभार में ले लेगा और उन्हे सुरक्षित अभिरक्षा में रखेगा और आबकारी विभाग के किसी ऐसे अधिकारी को जो ऐसे सामानों के साथ थाने तक जाय या जो इस प्रयोजन के लिये अपने वरिष्ठ अधिकारी द्वारा प्रतिनियुक्त किया जाय, ऐसे सामानों पर अपनी मुहर लगाने और उनके तथा उनसे नमूने लेने की अनुज्ञा देगा। इस प्रकार लिए गये समस्त नमूनों पर थाने के प्रभारी अधिकारी की भी मुहर लगाई जायेगी।

धारा-59–लोक शांति के निमित्‍त दुकानें बन्द करनें की शक्ति

जिला मजिस्ट्रेट लाइसेंसधारी को लिखित नोटिस देकर यह अपेक्षा कर सकता है कि कोई भी दुकान जिसमें किसी मादक वस्तु का विक्रय किया जाता हो ऐसे समयों पर या ऐसी अवधि के लिए बन्द रखी जाय जिसे वह लोक शांति बनाये रखने के लिये आवश्यक समझे।

यदि किसी ऐसी दुकान के सामीप्‍य मे कोई दंगा होने की या व्यक्तियों का अवैध जमाव होने की आशंका हो या वह हो जाय तो किसी भी श्रेणी का मजिस्ट्रेट या कांस्टेबल से उच्च पंक्ति का कोई पुलिस अधिकारी जो उपस्थित हो, ऐसी दुकान को उस अवधि के लिये बन्द रखने की अपेक्षा कर सकता है जिसे वह आवश्यक समझे:

प्रतिबन्ध यह है कि जहां कोई ऐसा दंगा हो जाय या व्यक्तियों का अवैध जमाव हो जाय तो लाइसेंसधारी ऐसे मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी की अनुपस्थिति में बिना किसी आदेश के भी दुकान बंद कर देगा।

धारा-60–अवैध आयात, निर्यात, परिवहन, निर्माण, कब्‍जा, विक्रय आदि के लिये शास्ति

60-(1)- जो कोई व्यक्ति इस अधिनियम या तदधीन बनाये गये किसी नियम या आदेश अथवा तदधीन प्राप्त किसी लाइसेन्स, परमिट या पास का उल्लंघन करके, –

(क)-किसी मादक वस्तु का निर्यात करता है; अथवा

(ख)-इस अधिनियम के धारा 63 के अधीन अनाच्छादित किसी मादक वस्तु का परिवहन करता है या उसे कब्‍जे में रखता है; अथवा

(ग)-स्वापक औषधि और मनः प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 के अधीन आच्छादित चरस, गांजा या किसी अन्य मादक औषधि से भिन्‍न, प्राकृतिक एवं स्वत: उपज वाले जंगली भारतीय भांग (केनेबिस सेटाइवा) के पौधों की पत्तियां और छोटे डंठल (जिनमे फूलों या फलों के अग्रभाग सम्मिलित नहीं है) का संग्रह या विक्रय करता है, अथवा

(घ)-कोई आसवनी ”यवासवनी, विनिर्माणशाला” या द्राक्षासवनी निर्मित करता है या चलाता है; या

(ङ)-किसी प्रकार का कोई सामान, भभका, बर्तन, औजार या उपकरण, ताड़ी से भिन्‍न किसी मादक वस्तु के निर्माण के लिये प्रयुक्त करता है या अपने पास या अपने कब्‍जे में रखता है; अथवा

(च)-इस अधिनियम के अधीन लाइसेन्स प्राप्त, स्थापित या चालू किसी आसवनी, ”यवासवनी, विनिर्माणशाला”, द्राक्षासवनी या भण्डागार से कोई मादक वस्तु हटाता है; अथवा

(छ)-विक्रय के प्रयोजन के लिये किसी शराब को बोतल में बन्द करता है; अथवा

(ज)-धारा 61 द्वारा उपबंधित दशा के सिवाय किसी मादक वस्तु का विक्रय करता है; अथवा

(झ)-धारा-42 के अधीन अधिसूचित क्षेत्रों में ताड़ी पैदा करने वाले वृक्षों से ताड़ी चुआता है, या निकालता है;

तो उसे कारावास से दण्डित किया जायेगा जो उपखण्ड (झ) के अधीन किसी अपराध की स्थिति में दो वर्ष तक हो सकता है और जुर्माने से दण्डित किया जायेगा जो एक हजार रूपये तक हो सकता है और किसी अन्य स्थिति में कारावास से दण्डित किया जायेगा जो तीन वर्ष तक का हो सकता है और ऐसे जुर्माने से दण्डित किया जायेगा जो प्रतिफल शुल्क की धनराशि या शुल्क जो, यदि ऐसी मादक वस्तु के सम्बन्ध में इस अधिनियम और तदधीन बनाये गये नियमों और दिये गये आदेशों के अनुसार या तदधीन प्राप्त किसी लाइसेन्स, परमिट या पास के अनुसार कार्यवाही की गयी होती तो उदग्रहणीय होती, के दस गुने या दो हजार रूपये जो भी अधिक हो, से कम न होगी।

(2)-जो कोई इस अधिनियम या तदधीन बनाये गये किसी नियम या दिये गये आदेश या इस अधिनियम के अधीन प्राप्त किसी लाइसेंस, परमिट या पास का उल्लंघन करके किसी मादक वस्तु का निर्माण करता है, उसे कारावास, जो छ: मास से कम नही होगा और जो तीन वर्ष तक हो सकता है, का दण्ड दिया जायेगा और उसे जुर्माने का भी दण्ड दिया जायेगा जो पांच हजार रूपये से कम नही होगा और जो दस हजार रूपये तक हो सकता है।

(3)-जो कोई इस अधिनियम या तदधीन बनाये गये किसी नियम या किये गये आदेश का उल्लंघन करके किसी मादक वस्तु का उपभोग करता है उसे जुर्माने का दण्ड दिया जायेगा जो एक हजार रूपये से कम नहीं होगा और जो दो हजार रूपये तक हो सकता है।

धारा-60-क–अपायकर पदार्थ को मादक वस्तु में मिश्रित करने के लिए तथा अपायकर पदार्थ को मादक वस्तु की ओट में बिक्री करने के लिए शास्ति

जो कोई, किसी मादक पदार्थ को किसी अन्य पदार्थ या विजातीय द्रव्य से उसे अपायकर करने हेतु मिश्रित करता है या मिश्रित करने देता है या ऐसे अपायकर मादक वस्तु या किसी अन्य अपायकर पदार्थ का किसी मादक वस्तु की ओट में उपभोग हेतु विक्रय करता है, उसे प्रदान करता है या विक्रय करवाता है या करने देता है या उपलब्ध करवाता है, जिससे मानव को विकलांगता या उपहति या घोर उपहति या मृत्यु या कोई अन्य परिणामी क्षति होना संभावित हो, को दण्डित किया जाएगा, —

(क)- यदि ऐसे किसी कृत्य के फलस्वरूप मृत्यु होती है तो उसे मृत्युदण्ड या आजीवन कारावास की सजा और जुर्माने जो दस लाख रूपये तक हो सकता है किन्तु जो पांच लाख रूपये से कम नहीं होगा के लिए भी दायी होगा;

(ख)-यदि ऐसे किसी कृत्य के फलस्वरूप विकलांगता या घोर उपहति होती है तो आजीवन कारावास अथवा कठोर कारावास से जो दस वर्ष तक हो सकता है किन्तु छ: वर्षों से कम न होगा और जुर्माना से जो पांच लाख रूपये तक हो सकता है, किन्तु तीन लाख रूपये से कम न होगा;

(ग)-यदि ऐसे किसी कृत्य के फलस्वरूप किसी व्यक्ति को कोई उपहति या कोई अन्य परिणामी क्षति पहुँचती है, तो ऐसी अवधि के कारावास से जो दो वर्ष तक हो सकता है किन्तु एक वर्ष से कम न होगा और जुर्माना से, जो दो लाख पचास हजार रूपये तक हो सकता है किन्तु एक लाख पच्चीस हजार रूपये से कम न होगा ।

स्पष्टीकरण:- इस धारा के प्रयोजनार्थ पद ”उपहति” और ”घोर उपहति” के अर्थ वही होगे जो भारतीय दण्ड विधान, 1860 (अधिनियम संख्या 45 सन् 1860) की क्रमश: धारा 319 और धारा 320 में है।

धारा-60-ख–कोकीन से सम्‍बन्धित अपराधों से प्रविरत रहने के लिए प्रतिभूति

निकाल दिया गया

धारा-61–इक्कीस वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों के हाथ अवैध रूप से बेचने अथवा इक्कीस वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों या महिलाओं को सेवायोजित करने के लिये शास्ति

यदि कोई लाइसेंस प्राप्त विक्रेता अथवा उसके सेवायोजन में और उसकी ओर से कार्य करने वाला कोई व्यक्ति —

(क)- धारा 22 का उल्लंघन करके कोई शराब या मादक भेषज किसी ऐसे व्यक्ति को बेचता है या देता है जो स्पष्टत: इक्कीस वर्ष से कम आयु का हो; या

(ख)- धारा 23 का उल्लंघन करके अपने लाइसेंस प्राप्त भू-गृहादि के किसी भाग में जिसका उल्लेख उक्त धारा में किया गया है, इक्कीस वर्ष से कम आयु के किसी व्यक्ति को या किसी महिला को सेवायोजन में रखता है अथवा सेवायोजित करने की अनुज्ञा देता है,

तो उसे अर्थदण्ड दिया जायेगा जो एक हजार रूपये तक हो सकता है।

धारा-62– विकृत स्प्रिट को मानव उपभोग के योग्य बनाने के लिये शास्ति

जो कोई किसी ऐसी स्प्रिट को, चाहे वह भारत में निर्मित हुई हो या नहीं, जो विकृत हो गयी हो, मानव उपभोग के योग्य बनाता है या बनाने का प्रयास करता है या कब्‍जे में कोई ऐसी विकृत स्प्रिट रखता है जो मानव उपभोग के योग्य बनायी गयी हो या जिसके सम्बन्ध में उसे इस योग्य बनाने का कोई प्रयास किया गया हो, तो उसे ऐसी अवधि के लिये जो छ: माह से कम नही होगी और जो तीन वर्ष तक हो सकती है, कारावास का दण्ड दिया जायेगा और वह अर्थदण्‍ड से जो पांच हजार रूपये से कम नहीं होगा और जो दस हजार रूपये तक हो सकता है, दण्डनीय होगा।

स्‍पष्‍टीकरण-इस धारा के प्रयोजनार्थ यह उपधारणा की जायेगी कि कोई स्प्रिट जिसके बारे में यह साबित हो जाये कि उसमें किसी मात्रा में विकारक तत्‍व है, विकृत स्प्रिट है या उसमें विकृत स्प्रिट मिला है या वह विकृत स्प्रिट से व्‍युत्‍पन्‍न है।

धारा-63–अवैध रूप से आयात की गई मादक वस्तु आदि को कब्‍जे मे रखने के लिये शास्ति

जो कोई व्यक्ति इस अधिनियम या तदधीन बनाये गये किसी नियम या किये गये किसी आदेश का उल्लंघन करके अवैध रूप से आयातित किसी मात्रा में मादक वस्तु का परिवहन करेगा या अपने कब्‍जे मे रखेगा, उसे ऐसे कारावास से, जो छः मास से कम नहीं होगा और जो पांच वर्ष तक हो सकता है, और जुर्माना से जो धारा 30 के अधीन उत्पाद शुल्क या प्रतिफल शुल्क की धनराशि जो, यदि किसी मादक वस्तु के सम्बन्ध में इस अधिनियम और तदधीन बनाये गये नियमों और दिये गये आदेशों के अनुसार या तदधीन प्राप्त लाइसेन्स, परमिट या पास के अनुसार कार्यवाही की गयी होती तो उदग्रहणीय होती, के दस गुने या पांच हजार रूपये, जो भी अधिक हो, से कम न होगा, दण्डित किया जायेगा।

धारा-64–लाइसेंसधारी या उसके सेवक द्वारा कतिपय कार्यों के लिये शास्ति

जो कोई इस अधिनियम के अधीन दिये गये किसी लाइसेंस, परमिट या पास का धारक होते हुए या ऐसे धारक के सेवायोजन में होते हुए, और उसकी ओर से कार्य करते हुए —

(क)-किसी आबकारी अधिकारी द्वारा मांगे जाने पर या किसी ऐसे अन्य व्यक्ति द्वारा मांगे  जाने पर जो इस प्रकार मांगने के लिये सम्यक् रूप से अधिकृत हो, ऐसा लाइसेंस, परमिट या पास प्रस्तुत नहीं करता है, या

(ख)-लाइसेंस, परमिट या पास की किन्हीं शर्तों का उल्लंघन करके जानबूझकर कोई ऐसा कार्य या कार्य-लोप करता है जिसके सम्बन्ध में इस अधिनियम में अन्यथा उपबन्ध न हो, या

(ग) ऐसे मामले, जिसके लिये धारा 60 में उपबन्ध है, से भिन्‍न किसी मामले में धारा 40 और धारा 41 के अधीन बनाये गये किसी नियम का जानबूझकर उल्लंघन करता है, उसे प्रत्येक ऐसे अपराध के लिये जुर्माना, जो एक हजार रूपये से कम नहीं होगा और जो पांच हजार रूपये तक हो सकता है, से दण्डित किया जायेगा।

धारा-64-क–लाइसेन्स प्राप्त विक्रेता या निर्माता द्वारा अपमिश्रण आदि के लिये शास्ति

(1)-निरसित

(2) जो कोई इस अधिनियम के अधीन किसी मादक वस्तु के विक्रय या निर्माण के लिये लाइसेंस धारक होते हुए या ऐसे धारक के सेवायोजन में होते हुये किसी ऐसी शराब जिसके बारे में वह जानता है या उसे विश्वास करने का कारण है कि वह देशी शराब है, विदेशी शराब के रूप में विक्रय करता है या विक्रयार्थ रखता या प्रदर्शित करता है, उसे कारावास का दण्ड जो तीन वर्ष तक हो सकता है, और अर्थदण्ड जो पांच हजार रूपये तक हो सकता है, दिया जायेगा :

प्रतिबन्ध यह है कि दण्ड निम्‍नलिखित से कम न होगा-

(एक) प्रथम अपराध के लिये तीन मास का कारावास और दो हजार रूपये का अर्थदण्ड, और

(दो) प्रत्येक द्वितीय और अनुवर्ती अपराधों के लिये छ: मास का कारावास और तीन हजार रूपये का अर्थदण्ड।

धारा-65–केमिस्ट की दुकान, आदि में उपभोग करने के लिये शास्ति

(1)-यदि कोई केमिस्ट, औषधि विक्रेता, औषधिक (अपोथेकेरी) या कोई औषधालय रखने वाला किसी ऐसी मादक वस्तु को जिसे यथार्थ रूप में औषधीय प्रयोजन के लिये औषधियुक्त न किया गया हो, किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा जो उसके व्यवसाय में सेवायोजित न हो, अपने व्यवसाय के भू-गृहादि में उपभोग किये जाने की अनुज्ञा देता है तो उसे ऐसी अवधि के लिये कारावास का दण्ड दिया जायेगा जो एक वर्ष तक हो सकता है या अर्थदण्ड दिया जायेगा जो पांच हजार रूपये तक हो सकता है या दोनो दण्ड दिये जायेंगे।

(2)-यदि कोई व्यक्ति जो पूर्ववत प्रकार से सेवायोजित न हो ऐसे भू-गृहादि में किसी ऐसी मादक वस्तु का उपभोग करता है तो उसे अर्थदण्ड दिया जायेगा जो पांच हजार रूपये तक हो सकता है।

धारा-66–कर्तव्य पालन करने से इंकार करने पर आबकारी अधिकारी के लिये शास्ति

किसी ऐसे आबकारी अधिकारी को] जो बिना वैध कारण के अपने पद के कर्तव्यों का पालन करने से परिविरत हो जाय या उनका पालन करने से इंकार कर दे या उनका पालन न करे, जब तक आबकारी आयुक्त द्वारा उसे ऐसा करने की अभिव्यक्त रूप से लिखित अनुज्ञा न दी गई हो या जब तक उसने अपने वरिष्ठ अधिकारी को ऐसा करने के अपने अभिप्राय का दो माह का नोटिस न दे दिया हो, कारावास का दण्ड दिया जायगा जो एक वर्ष तक हो सकता है या अर्थदण्ड दिया जायगा जो पांच हजार रूपये तक हो सकता है या दोनों दण्ड दिये जायेंगे।

धारा-67–क्षोभकारी (अफसोसनाक) तलाशी आदि लेने वाले आबकारी अधिकारी के लिये शास्ति

यदि कोई आबकारी अधिकारी —

(क)- सन्देह के उचित कारणों के बिना किसी स्थान में प्रवेश करता है, उसका निरीक्षण करता है या उसकी तलाशी लेता है अथवा उसमें प्रवेश करवाता है, उसका निरीक्षण करवाता है या उसकी तलाशी लिवाता है; या

(ख)-इस अधिनियम के अधीन जब्त किये जाने योग्य किसी पदार्थ को अभिगृहीत करने या उसकी तलाशी लेने के बहाने किसी व्यक्ति की किसी सम्पत्ति को क्षोभकारी और अनावश्यक रूप से अभिगृहीत करता है; या

(ग)- किसी व्यक्ति को क्षोभकारी और अनावश्यक रूप से निरूद्ध करता है, उसकी तलाशी लेता है या उसे गिरफ्तार करता है, तो उसे ऐसी अवधि के लिये कारावास का दण्ड दिया जायगा जो एक वर्ष तक हो सकता है या अर्थदण्ड दिया जायगा जो पांच हजार रूपये तक हो सकता है, या दोनो दण्ड दिये जायेंगे।

धारा-68–ऐसे अपराधों के लिये शास्ति जिनकी अन्यथा व्यवस्था न की गई हो

जो व्यक्ति इस अधिनियम के, अथवा इस अधिनियम के अधीन बनाये गये किसी नियम या दिये गये किसी आदेश के किन्हीं उपबन्धों के उल्लंघन में किसी कार्य का या साभिप्राय कार्यलोप का जिसकी इस अधिनियम में अन्यथा व्यवस्था न की गई हो, दोषी हो, उसे ऐसे प्रत्येक कार्य या कार्यलोप के लिए अर्थदण्ड दिया जायेगा जो पांच हजार रूपये तक हो सकता है।

धारा-69–पूर्व दोष सिद्धि के पश्चात वर्धित दण्ड

यदि कोई व्यक्ति धारा 60, धारा 62, धारा 63 या धारा 65 के अधीन या उन धाराओं के उपबन्धों के अधीन जैसे कि वे समय-समय पर थे, दण्डनीय किसी अपराध के लिये पहले सिद्ध दोष ठहराये जा चुकने के पश्चात इन धाराओं में से किसी धारा के अधीन दण्डनीय अपराध करता है और सिद्ध दोष ठहराया जाता है, तो वह उस दण्ड से दुगुना दण्ड पाने का भागी होगा जो इस अधिनियम के अधीन पहली दोष सिद्धि पर आरोपित किया जा सकता हो :

प्रतिबन्ध यह है कि धारा 60 की उपधारा (1), या धारा 63 या धारा 65 के अधीन द्वितीय या अनुवर्ती अपराध के लिये दोष सिद्धि की स्थिति में अर्थ-दण्ड सहित कम से कम एक वर्ष की अवधि के कारावास का दण्ड दिया जायगा और धारा 60 की उपधारा (2) या धारा 62 के अधीन द्वितीय या अनुवर्ती अपराध के लिये दोष सिद्धि की स्थिति में अर्थदण्ड सहित कम से कम दो वर्ष की अवधि के कारावास का दण्ड दिया जायगा :

अग्रतर प्रतिबन्ध यह है कि इस धारा की कोई बात किसी ऐसे अपराध के लिये, जिस पर अन्यथा दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अध्याय 21 के अधीन सरसरी तौर पर विचार किया जा सकता हो, इस प्रकार विचार किये जाने में रूकावट नहीं डालेगी ।

धारा-69-क–कतिपय अपराधों को करने से परिवर्जन के लिए प्रतिभूति की मांग करना

(1)-जब कभी कोई व्यक्ति धारा 60, धारा 60क, धारा 62, धारा 63 या धारा 65 के उपबन्धों के अधीन दण्डनीय किसी अपराध के लिये सिद्ध दोष हो, ऐसे व्यक्ति को दोषी सिद्ध करने वाला न्यायालय उसे दण्डादेश देते समय यह आदेश दे सकता है कि वह तीन वर्ष से अनधिक ऐसी अवधि में, जैसा वह निदेश दे, उक्त उपबन्धों के अधीन दण्डनीय किसी अपराध को करने से परिवर्जन के लिये, प्रतिभूतियों सहित अथवा बिना प्रतिभूतियों के, ऐसी धनराशि का जो, उसके साधनों के अनुपात मे हों, एक बन्धपत्र निष्पादित करे।

(2)-दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 के उपबन्ध आवश्यक परिवर्तनों के साथ ऐसे बन्ध-पत्र से सम्बद्ध समस्त विषयों पर लागू होंगे मानों कि यह बन्धपत्र शान्ति बनाए रखने के लिये उक्त संहिता की धारा 106 के अधीन दिये गये आदेश से निष्पादित बन्ध-पत्र हो।

धारा-69-ख–दुष्‍प्रेरण के लिए शास्ति

जो व्यक्ति इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय किसी अपराध का दुष्प्रेरण करता है उसे भारतीय दण्ड संहिता की धारा 116 में किसी बात के होते हुए भी, दोष सिद्धि पर ऐसे दुष्प्रेरण के लिए वही दण्ड दिया जायगा, जो मूल अपराध के लिए उपबन्धित है, चाहे ऐसा अपराध ऐसे दुष्प्रेरण के फलस्वरूप किया गया हो अथवा नहीं।

धारा-69-ग–कम्‍पनियों द्वारा अपराध 

(1) यदि इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध कम्पनी द्वारा किया गया हो तो प्रत्येक ऐसा व्यक्ति जो अपराध किये जाने के समय उस का व्यवसाय चलाने के लिये कम्पनी का प्रभारी तथा उसके प्रति उत्तरदायी रहा हो और साथ ही कम्पनो भी, अपराध के दोषी समझे जायेंगे, और तदनुसार उनके विरुद्ध कार्यवाही की जा सकेगी तथा उन्हें दण्‍ड दिया जा सकेगा :

प्रतिबंध यह है कि इस उपधारा में दी गयी किसी बात से ऐसा व्यक्ति दण्ड का भागी नहीं होगा यदि वह यह सिद्ध कर दे कि अपराध उसकी जानकारी के बिना किया गया था अथवा उसने ऐसा अपराध किये जाने को रोकने के लिये सभी प्रकार का यथोचित परिश्रम किया था।

स्‍पष्टीकरण- इस धारा के प्रयोजनों के लिये–

(ए) “कम्पनी” का तात्पर्य किसी निगमित निकाय से है तथा इसके अन्तर्गत फर्म अथवा व्‍यक्तियों का अन्‍य संध भी है; और

(बी) फर्म के संबंध में “निदेशक” का तात्‍पर्य फर्म के भागीदार से है।

धारा-70–अपराधों का संज्ञान

(1)-कोई मजिस्ट्रेट जब तक कि–

(क)-उसकी अपनी जानकारी या सन्देह न हो अथवा किसी आबकारी अधिकारी द्वारा परिवाद या रिपोर्ट न की जाय, धारा 60, धारा 60क, धारा 62, धारा 63 , धारा 64 क या धारा 65 या धारा 69ख के अधीन दण्डनीय किसी अपराध का; या

(ख)-कलेक्टर या उसके द्वारा सामान्य या विशेष आदेश द्वारा तदर्थ प्राधिकृत किसी आबकारी अधिकारी द्वारा परिवाद या रिपोर्ट न की जाय, धारा 64, धारा 66, धारा 67 या धारा 68 के अधीन दण्डनीय किसी अपराध का संज्ञान न करेगा।

(2)- राज्य सरकार की विशेष स्वीकृति के बिना कोई मजिस्ट्रेट धारा 60क की उप धारा (क) व (ख) तथा धारा 67 के अधीन किये गये अथवा उसके लिये दुष्प्रेरित किसी अपराध से भिन्‍न इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय किसी अपराध का संज्ञान तब तक नहीं लेगा जब तक कि अभियोजन, उस दिनांक, जिस दिनांक को अपराध किया जाना अभिकथित हो, के पश्चात एक वर्ष के भीतर न संस्थित किया जाय।

धारा-71– कुछ मामलों में अपराधों के किये जाने के संबंध में उपधारणा

धारा 60, धारा 60क के अधीन प्रत्येक अभियोजन में जब तक इसके प्रतिकूल सिद्ध न कर दिया जाय, यह उपधारणा की जायेगी कि अभियुक्त व्यक्ति ने निम्‍नलिखित के सम्बन्ध में उक्त धारा के अधीन दण्डनीय अपराध किया है-

(क)- किसी मादक वस्तु; या

(ख)-ताड़ी से भिन्‍न किसी मादक वस्तु के निर्माण के लिए किसी भी प्रकार के किसी भभके, बर्तन, औजार या उपकरण; या

(ग)-किन्हीं ऐसे सामानों, जिस पर किसी मादक वस्तु के निर्माण के सम्बन्ध में प्रक्रिया की गई हो या जिनसे कोई मादक वस्तु निर्मित की गई हो, जिन्हें अपने कब्‍जे में रखने के सम्बन्ध में वह कोई संतोषजनक कारण बताने में असमर्थ हो :

और इस अधिनियम के अधीन लाइसेंस, परमिट या पास का धारक तथा वास्तविक अपराधी भी धारा 60, धारा 60क, धारा 62, धारा 63 या धारा 64 के अधीन दण्डनीय किसी अपराध के लिये, जो उसके सेवायोजन में और उसकी ओर से कार्य करने वाले किसी व्यक्ति द्वारा किया गया हो, दण्ड का भागी होगा मानो उस अपराध को उसने स्वयं किया हो, जब तक कि वह यह न सिद्ध कर दे कि ऐसे अपराध को किए जाने से रोकने के लिए उसने सभी सम्यक् और उचित पूर्वोपाय किए थे :

प्रतिबन्ध यह है कि धारा 60क व धारा 69ख में किसी बात के प्रतिकूल होते हुये भी वास्तविक अपराधी से भिन्‍न किसी व्यक्ति को जुर्माना देने में व्यतिक्रम के सिवाय कारावास का दण्ड नहीं दिया जायेगा।

धारा-71–क–क्षमा आदि से संबंधित उपबन्‍ध अधिनियम के अधीन दण्‍डनीय अपराधों पर लागू होंगे 

दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 306 और 308 के उपबन्ध इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय अपराधों के सम्बन्ध में उसी प्रकार लागू होंगे जिस प्रकार वे उक्त संहिता की धारा 306 में उल्लिखित अपराधों के सम्बन्ध में लागू होते हैं।

धारा-72–कौन सी वस्तुएं जब्त किये जाने योग्य होंगी

जब कभी इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय कोई अपराध किया गया हो तो–

(क)-ऐसी प्रत्येक मादक वस्तु जिसके सम्बन्ध में ऐसा अपराध किया गया हो;

(ख)-ऐसा प्रत्येक भभका, बर्तन , औजार या उपकरण और समस्त सामान जिनके द्वारा उक्त अपराध किया गया हो;

(ग)-प्रत्येक मादक वस्तु जो विधिपूर्वक आयात की गई हो, जिसका परिवहन किया गया हो, जो निर्मित की गई हो, कब्‍जे मे रखी गई हो या खण्ड (क) के अधीन जब्त की जाने योग्य किसी मादक वस्तु के साथ-साथ या उसके अतिरिक्त बेच दी गई हो;

(घ)-प्रत्येक पात्र, संवेष्टन और आवरण जिसमें यथापूर्वोक्त कोई मादक वस्तु या कोई सामान, भभका, बर्तन, औजार या उपकरण हो या ऐसे पात्र या संवेष्टन की किसी अन्य अन्तर्वस्तु (यदि कोई हो ) के साथ साथ पाया जाय; और

(ङ)-प्रत्येक पशु , गाड़ी , जलयान या अन्य वाहन जो ऐसे पात्र या संवेष्टन के लाने ले जाने के लिए प्रयोग किया जाय,

जब्त किये जाने योग्य होगा।

(2)-जहां इस अधिनियम के किसी उपबन्ध के अधीन किसी वस्तु या पशु का अभिग्रहण किया जाय वहां ऐसी संपत्ति को अभिग्रहीत एवं निरूद्ध करने वाला अधिकारी, ऐसे अभिग्रहण एवं निरूद्धता के दिनांक से तीन कार्य दिवस के भीतर, ऐसी अभिग्रहीत सम्पत्ति, अभिग्रहण ज्ञापन और अन्य सुसंगत दस्तावेजों सहित अधिहरण हेतु विस्तृत रिपोर्ट कलेक्टर के समक्ष प्रस्तुत करेगा। कलेक्टर अभिग्रहण ज्ञापन और अभिग्रहीत संपत्ति सहित उक्त रिपोर्ट प्राप्त करने पर तत्काल माल की सुरक्षित अभिरक्षा और भण्डारण हेतु आदेश देगा जैसा की वह उचित समझे। यदि अभिलिखित किया जाने वाले कारणों से कलेक्टर को यह समाधान हो जाय कि कोई अपराध किया गया है जिसके कारण ऐसी वस्तु या पशु उपधारा (1) के अधीन अधिहरण किये जाने का दायी हो गया है, तो वह ऐसी वस्तु या पशु का अधिहरण करने का आदेश दे सकता है चाहे ऐसे अपराध के लिये अभियोजन संस्थित किया गया हो या न किया गया हो :

प्रतिबन्ध यह है कि उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी वस्तु (मादक वस्तु को छोड़कर) या पशु की स्थिति में इसके स्वामी को विकल्प दिया जायगा कि वह उसके अधिहरण के बदले में उसका अभिग्रहण किये जाने के दिनांक को उसके बाजार मूल्य से अनधिक जुर्माना का भुगतान करे, जिसे कलेक्टर पर्याप्त समझे।

(3)- जहां अभिग्रहण की रिपोर्ट प्राप्त होने पर या अभिग्रहीत वस्तु का जिसके अन्तर्गत कोई पशु, गाड़ी, जलयान या वाहन भी है, निरीक्षण करने पर कलेक्टर की यह राय हो कि कोई ऐसी वस्तु या पशु शीघ्रता से क्षीण और दुर्बल या प्राकृतिक रूप से क्षय होने वाला है या अन्यथा लोकहित में ऐसा करना समीचीन है, वहां वह ऐसी वस्तु (मादक वस्तु को छोड़कर) या पशु को नीलाम द्वारा या अन्य प्रकार से बाजार मूल्य पर बेचने का आदेश दे सकता है।

(4)-जहां कोई ऐसी वस्तु या पशु को उपर्युक्त प्रकार से बेचा जाय; और

(क)-उपधारा (2) के अधीन या उपधारा (6) के अधीन पुनर्विलोकन पर कलेक्टर द्वारा अन्ततोगत्वा जब्‍ती का आदेश न दिया जाय या न बना रहने दिया जाय; या

(ख)-उपधारा (7) के अधीन अपील पर दिये गये आदेश में ऐसा अपेक्षित हो; या

(ग)-उस अपराध के लिये जिसके सम्बन्ध में वस्तु या पशु का अभिग्रहण किया जाय, अभियोजन संस्थित किये जाने की दशा में न्यायालय के आदेश से ऐसा करना अपेक्षित हो, वहां

विक्रय व्यय की कटौती करने के पश्चात विक्रय आगम का भुगतान उसके हकदार व्यक्ति को किया जायगा।

(5)-(क)- इस धारा के अधीन जब्‍ती का आदेश तब तक नही दिया जायेगा जब तक कि उसके स्वामी या उस व्यक्ति को जिससे उसे अभिगृहीत किया जाय-

(1)-ऐसे आधार सूचित करते हुए जिन पर इस प्रकार जब्ती प्रस्तावित है, कोई लिखित नोटिस;

(2)-ऐसे युक्तियुक्त समय के भीतर जैसा नोटिस में विनिर्दिष्ट किया जाय, लिखित अभ्यावेदन देने का अवसर; और

(3)- उस विषय में सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर न दे दिया जाय।

(ख)-किसी पशु, गाड़ी, जलयान या अन्य वाहन को जब्त करने का कोई आदेश नहीं दिया जायेगा यदि उसका स्वामी कलेक्टर के सन्तोषानुसार यह साबित कर दे कि पशु, गाड़ी, जलयान या अन्य वाहन का प्रयोग उसके स्वामी, अभिकर्ता, यदि कोई हो, और प्रभारी व्यक्ति की जानकारी या मौनानुमति के बिना, विनिषिद्ध माल को ले जाने के लिए किया गया था और इनमें से प्रत्येक ने इस प्रकार प्रयोग किये जाने के विरुद्ध सभी युक्तियुक्त और आवश्यक पूर्वोपाय किये थे और इस उपबन्ध का कोई प्रतिकूल प्रभाव खण्ड (क) के उपबन्धों पर नहीं पड़ेगा।

(6)-जहां उपधारा (2) के अधीन दिये गये जब्ती के किसी आदेश से एक मास के भीतर कलेक्टर को, इस निमित्त आवेदन पत्र दिये जाने पर या, यथास्थिति, उक्त उपधारा के अधीन जब्‍ती से इन्कार करने के आदेश से एक मास के भीतर अभिगृहीत वस्तु या पशु के स्वामी को या उस व्यक्ति को, जिसके कब्‍जे से उसे अभिगृहीत किया गया हो, कलेक्टर द्वारा स्वप्रेरणा से यह कारण बताने का नोटिस जारी करने के पश्चात कि क्यों न आदेश का पुनर्विलोकन किया जाय और उसे सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर देने के पश्चात, कलेक्टर को यह समाधान हो जाय कि अभिलेख को देखने से ही यह प्रकट होता है कि आदेश में कोई भूल है जिसके अन्तर्गत विधि सम्बन्धी भूल भी है , वहां वह पुनर्विलोकन करके ऐसा आदेश दे सकता है, जिसे वह उचित समझे।

(7)-उपधारा (2) या उपधारा (6) के अधीन जब्ती के किसी आदेश से व्यथित कोई व्यक्ति, उसे ऐसा आदेश सूचित किये जाने के दिनांक से एक मास के भीतर, ऐसे न्यायिक प्राधिकारी को अपील कर सकता है जिसे राज्य सरकार इस निमित्त नियुक्त करे और न्यायिक प्राधिकारी अपीलार्थी को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात उस आदेश को जिसके विरूद्ध अपील की जाय, पुष्टि, परिष्कार या विखण्डन करने का ऐसा आदेश दे सकता है, जिसे वह उचित समझे।

(8)-जहां ऐसे अपराध के लिये जिसके सम्बन्ध में ऐसी जब्‍ती का आदेश दिया गया हो, अभियोजन संस्थित किया जाय, वहां उपधारा (4) के उपबन्धों के अधीन रहते हुये उस वस्तु या पशु का  निस्तारण न्यायालय के आदेश के अनुसार किया जायेगा।

(9)-इस धारा के अधीन कलेक्टर द्वारा दिया गया जब्ती का कोई आदेश ऐसे किसी दण्ड के आरोपण से निवारित नही करेगा जिसके लिये उससे प्रभावित व्यक्ति इस अधिनियम के अधीन भागी हो।

धारा-73–जब्ती के सम्बन्ध में अग्रेतर उपबन्ध

जब धारा 72 की उपधारा (1) के खण्ड (क) और (ख) में उल्लिखित कोई वस्तु ऐसी परिस्थितियों में पाई जाय जिनसे यह विश्वास करने का कारण हो कि उस वस्तु के सम्बन्ध में या उसके द्वारा इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय अपराध किया गया है या जब ऐसा अपराध किया गया हो और अपराधी अज्ञात हो या वह न मिल सके, तो कलेक्टर ऐसी वस्तु या उसके साथ पायी गयी या प्रयुक्त कोई अन्य वस्तु या पशु को जो धारा 72 की उपधारा (1) में की गई व्यवस्था के अनुसार जब्त किये जाने योग्य हो, जब्त करने का आदेश दे सकता है:

प्रतिबन्ध यह है कि कोई ऐसा आदेश तब तक न दिया जायगा जब तक कि प्रश्‍नगत वस्तु या पशु के अभिग्रहण किए जाने के दिनांक से एस माह की अवधि न बीत जाय या उस व्यक्ति की (यदि कोई हो), जो उसके सम्बन्ध में किसी अधिकार का दावा करे और उस साक्ष्य की (यदि कोई हो), जो वह अपने दावे के समर्थन में प्रस्तुत करें, सुनवाई न कर ली जाय:

अग्रतर प्रतिबन्ध यह है कि यदि प्रश्‍नगत वस्तु शीघ्रतापूर्वक और प्राकृतिक रूप से क्षय होने वाली हो या यदि कलेक्टर की यह राय हो कि प्रश्‍नगत वस्तु या पशु का विक्रय उसके स्वामी के लाभार्थ होगा तो कलेक्टर किसी भी समय उसका विक्रय किए जाने का निदेश  दे सकता है; और इस धारा के उपबन्ध ऐसे विक्रय के शुद्ध आगम पर यथाशक्य लागू होंगे।

धारा-73-क–जब्त की गई मादक वस्तु को नष्ट करने का आदेश

जहां धारा 72 या धारा 73 के अधीन कोई मादक वस्तु का अधिहरण किया जाय, वहां  किसी न्यायालय द्वारा उस निमित्त दिये गये किसी आदेश के अध्‍यधीन, यदि कलेक्टर की राय मे अधिहरण की गयी मादक वस्तु मानव उपभोग योग्य नहीं है अथवा यदि अधिहरण की गयी मादक वस्तु को भण्डारित अथवा परिरक्षित नहीं किया जा सकता तो वह, इस अधिनियम में अंतर्विष्ट किसी बात के प्रतिकूल होते हुए भी उक्त मादक वस्तु को नष्ट किये जाने का आदेश दे सकता है :

प्रतिबन्ध यह है कि मादक वस्तु के अधिहरण किये जाने के दिनांक से दो मास की समाप्ति के पश्चात के सिवाय या जहां अधिहरण के आदेश के विरुद्ध पुनर्विलोकन या किसी अपील हेतु आवेदन-पत्र इस सम्बन्ध में ऐसे पुनर्विलोकन या अपील में पारित आदेश के अनुसार के सिवाय लंबित हो, नष्ट नहीं किया जाएगा:

अग्रतर प्रतिबन्ध यह है कि इस धारा के अधीन मादक वस्तु नष्ट किये जाने हेतु कोई आदेश, उस व्यक्ति, जिसकी अभिरक्षा से मादक वस्तु बरामद किया गया हो, को 7 दिन की नोटिस के पश्चात सुनवाई का अवसर प्रदान किये बिना पारित नहीं किया जायेगा:

प्रतिबन्ध यह भी है कि मादक वस्तु का पर्याप्त नमूना साक्ष्यिक अपेक्षाओं की पूर्ति के लिये परिरक्षित किया जायेगा।

धारा-74–अपराध का शमन

(1)-कोई आबकारी अधिकारी जो इस निमित्त राज्य सरकार द्वारा विशेष रूप से सशक्त किया गया हो, किसी ऐसे व्यक्ति से जिसका लाइसेन्स, परमिट या पास धारा 34 के अधीन निरसित या निलम्बित किये जाने योग्य हो या जिसके सम्बन्ध में युक्तियुक्त संदेह हो कि उसने धारा 64 या धारा 68 के अधीन दण्डनीय अपराध किया है, यथास्थिति, ऐसे निरसन या निलम्बन के बदले में या किये गये अपराध के शमन के रूप में पचास हजार रूपये से अनधिक धनराशि स्वीकार कर सकता है और ऐसे सभी मामलों में जिनमें इस अधिनियम के अधीन जब्त की जाने योग्य कोई सम्पत्ति अभिगृहीत की गयी हो, उस सम्पत्ति के (ऐसे अधिकारी द्वारा अनुमानित) मूल्य का भुगतान किये जाने पर उसे छोड़ सकता है।

धारा-74-(1-क)-राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त विशेष रूप से सशक्त कोई अधिकारी, राज्य सरकार के किसी सामान्य या विशेष आदेश के अधीन रहते हुए, अभियोजन संस्थित किये जाने के पूर्व या पश्चात, जहां अन्तर्ग्रस्त मादक वस्तु का परिमाण राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त अधिसूचित परिमाण से अधिक न हो, वहां धारा 60 की उपधारा (1) के खण्ड (क) और खण्ड (ख) या धारा 63 के अधीन किसी अपराध, का या धारा 60 की उपधारा (3) के अधीन दण्डनीय किसी भी अपराध का, शमन फीस के रूप में ऐसी धनराशि का जिसे वह उचित समझे और जो एक हजार रूपये से कम नहीं होगी और जो पांच हजार रूपये तक हो सकती है का भुगतान करने पर, शमन कर सकता है, यदि ऐसा कोई अपराध किसी व्यक्ति द्वारा पहली बार किया गया हो।

धारा-74-(2)-ऐसे व्यक्ति द्वारा, यथास्थिति, ऐसी धनराशि या ऐसे मूल्य या दोनो का भुगतान कर दिये जाने पर उस व्यक्ति को, यदि अभिरक्षा में हो, निर्मुक्त कर दिया जायेगा और अभिगृहीत समस्त सम्पत्ति छोड़ दी जा सकेगी और ऐसे व्यक्ति के विरूद्ध किसी दण्ड न्यायालय में कोई कार्यवाही संस्थित नहीं की जायेगी न जारी रखी जायगी। शमन के रूप में ऐसी धनराशि स्वीकार करने को दोषमुक्ति समझा जायगा और किसी भी स्थिति में ऐसे व्यक्ति या सम्पत्ति के विरूद्ध उसी कार्य के अभिदेश में कोई अग्रतर कार्यवाही नहीं की जायगी।

धारा-74-क–शास्ति-आरोपण

(1)-यदि इस अधिनियम के अधीन दिये गये किसी लाइसेंस, परमिट या पास का धारक या ऐसे धारक का कोई कर्मचारी लाइसेन्स, परमिट या पास की किन्हीं शर्तों या इस अधिनियम के अधीन बनाये गये किसी नियम का उल्लंघन करता है तो राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत कोई आबकारी अधिकारी एक लाख रूपये से अनधिक की शास्ति आरोपित कर सकता है।

(2) उपधारा (1) के अधीन शास्ति आरोपित करने का कोई आदेश नहीं दिया जायगा जब तक कि लाइसेंस, परमिट या पास के धारक या सम्बद्ध कर्मचारी को —

(क)-उन आधारों को जिन पर इस धारा के अधीन कार्यवाही किये जाने का प्रस्ताव है, सूचित करते हुये लिखित नोटिस न दे दी गई हो ;

(ख)-ऐसे समय के भीतर, जो नोटिस मे विनिर्दिष्ट किया जाय, ऐसे आधार के विरूद्ध लिखित रूप में अभ्यावेदन करने का युक्तियुक्त अवसर न दे दिया गया हो; और

(ग)-मामले में सुनवाई का उपयुक्त अवसर न दे दिया गया हो।

(3) कोई व्यक्ति जिस पर उपधारा (1) के अधीन शास्ति आरोपित की जाय इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के सम्बन्ध में उन्हीं तथ्यों पर अभियोजित नहीं किया जा सकेगा।

धारा-75–औषधियुक्त पदार्थों के सम्बन्ध में अपवाद

इस अधिनियम के पूर्ववर्ती उपबन्धों की कोई बात सिवाय वहां तक जहां तक राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा ऐसा निदेश दे, चिकित्सा व्यवसायियों, केमिस्टों, औषधि विक्रेताओं, औषधिकों या औषधालय रखने वालों द्वारा औषधीय प्रयोजनों के निमित्त किसी वास्तविक औषधियुक्त पदार्थ का आयात किये जाने, निर्माण किये जाने, उसे कब्‍जे में रखे जाने, उसका विक्रय या संभरण किये जाने पर लागू न होगी।

धारा-76–व्यक्तियों तथा मादक वस्तुओं की इस अधिनियम के उपबन्धों से विमुक्त करने की राज्य सरकार की शक्ति

राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा और ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुये जिन्हें वह विहित करना उचित समझे, किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के किसी वर्ग को या किसी मादक वस्तु को इस अधिनियम के सभी उपबन्धों या उनमें से किन्हीं उपबन्धों के या इस अधिनियम के अधीन बनाये गये सभी नियमों या उनमें से किन्हीं नियमों के प्रवर्तन से या तो सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश में या तदन्तर्गत समाविष्ट किसी निर्दिष्ट क्षेत्र में या किसी निर्दिष्ट अवधि या अवसर के लिये पूर्णत: या अंशत: विमुक्त कर सकती है।

धारा-77–नियमों तथा अधिसूचनाओं का प्रकाशन

इस अधिनियम के अधीन बनाये गये समस्त नियम तथा जारी की गयी समस्त अधिसूचनायें सरकारी गजट में प्रकाशित की जायेंगी और वे इस प्रकार प्रभावी होंगी मानो वे इस अधिनियम में ऐसे प्रकाशन के दिनांक से या ऐसे अन्य दिनांक से जो तदर्थ निर्दिष्ट किया जाय, अधिनियमित हुई हों।

प्रतिबन्ध यह है कि इस धारा या किसी निर्णय, डिक्री या आदेश में किसी प्रतिकूल बात के होते हुये भी, राज्य सरकार द्वारा धारा 28 और धारा 29 के अधीन शक्तियों का प्रयोग करके जारी की गई अधिसूचना संख्या 3514-ई/तेरह-331-78, दिनांक 17 अप्रैल, 1978 और 1227- ई/तेरह-332-78, दिनांक 17 अप्रैल, 1978 और उपर्युक्त अधिसूचनाओं द्वारा किये गये संशोधन, 1 अप्रैल, 1978 को और से प्रवृत्त होंगे और सदैव 1 अप्रैल, 1978 को और से प्रवृत्त समझे जायेंगे।

अग्रतर प्रतिबन्ध यह है कि इस धारा में या किसी संविदा, निर्णय, डिक्री या आदेश में किसी प्रतिकूल बात के होते हुये भी, राज्य सरकार द्वारा धारा 30 के अधीन शक्ति का प्रयोग करके जारी की गयी अधिसूचना संख्या 3842 ई / तेरह-512-83, दिनांक 25 मई, 1983 पहली अप्रैल, 1983 को और उसी दिनांक से प्रभावी होगी और सदैव से प्रभावी समझी जायेगी।

धारा-78–कतिपय वादों पर रोक

(1)-इस अधिनियम के या आबकारी राजस्व से सम्बन्धित तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अनुसरण में सदभावनापूर्वक किये गये या किये जाने के लिये आदिष्ट किसी कार्य के विषय मे क्षतिपूर्ति के लिये सरकार के या किसी अधिकारी या अन्य व्यक्ति के विरूद्ध कोई वाद किसी सिविल न्यायालय में प्रस्तुत न किया जा सकेगा।

(2)-कोई सिविल न्यायालय किसी ऐसे वाद पर जो इस अधिनियम के अनुसरण में की गई अथवा की गई अभिकथित किसी बात के संबंध मे सरकार के विरूद्ध विधि पूर्वक लाया जा सकता हो, विचारण नहीं करेगा जब तक कि वह वाद परिवादित कार्य के दिनांक के पश्चात छ: माह के भीतर संस्थित न किया जाय।

धारा-79–आबकारी आयुक्त की समय समय पर प्रयोक्तव्य शक्तियां

इस अधिनियम द्वारा आबकारी आयुक्त को प्रदत्त कोई शक्ति समय-समय पर अवसरानुसार प्रयुक्त की जा सकती है।