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उत्तर प्रदेश सूचना का अधिकार नियमावली, 2015[1]

1. संक्षिप्त नाम और प्रारम्भ

(1) यह नियमावली उत्तर प्रदेश सूचना का अधिकार नियमावली, 2015 कही जायेगी।

(2) यह गजट में प्रकाशित होने के दिनांक से प्रवृत्त होगी।

(3) ऐसी शिकायतें और अपीलें जो इस नियमावली के प्रारम्भ होने के दिनांक को या उसके पूर्व दाखिल की गयी हैं और उचित पाई गयी हैं और उक्त दिनांक के पूर्व पहले से ही पंजीकृत हैं, के सम्बन्ध में कार्यवाही पूर्ववत की जायेगी और उनका उनमें किसी शैथिल्य के कारण उपशमन नहीं किया जायेगा अथवा उन्हें नामंजूर नहीं किया जायेगा।

2. परिभाषाएं

(1) जब तक सन्दर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, इस नियमावली में-

(क) “अधिनियम” का तात्पर्य सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (अधिनियम संख्या 22 सन् 2005) से है;

(ख) “अपीलार्थी” का तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है जिसने अधिनियम की धारा 19 के अधीन अपील दायर की हो;

(ग) “प्राधिकृत प्रतिनिधि” का तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है जिसे किसी पक्षकार द्वारा आयोग के समक्ष किसी कार्यवाही में उसका प्रतिनिधित्व करने के लिए लिखित रूप से प्राधिकृत किया गया हो;

(घ) “मुख्य सूचना आयुक्त” का तात्पर्य अधिनियम की धारा 15 की उपधारा (3) के अधीन नियुक्त राज्य मुख्य सूचना आयुक्त से है;

(ङ) “आयोग” का तात्पर्य अधिनियम की धारा 15 की उपधारा (1) के अधीन गठित उत्तर प्रदेश सूचना आयोग से है और उसके अन्तर्गत इस अधिनियम के सुसंगत उपबन्धों के अधीन किसी शिकायत या अपील की सुनवाई का संचालन करने वाला मुख्य सूचना आयुक्त या कोई सूचना आयुक्त भी है;

(च) “शिकायतकर्ता” का तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है जिसने अधिनियम की धारा 18 के अधीन आयोग के समक्ष कोई शिकायत दायर की हो;

(छ) “प्रथम अपीलीय प्राधिकारी” का तात्पर्य लोक प्राधिकरण में ऐसे अधिकारी से है जो राज्य लोक सूचना अधिकारी से पंक्ति में ज्येष्ठ हो और उसे अधिनियम की धारा 19 की उपधारा (1) के अधीन लोक प्राधिकरण द्वारा नियुक्त या अधिसूचित किया गया हो और उसे राज्य लोक सूचना अधिकारी द्वारा पारित आदेश के विरुद्ध प्रथम अपील की सुनवाई करने के लिए प्राधिकृत किया गया हो;

(ज) “प्ररूप” का तात्पर्य इस नियमावली से संलग्न परिशिष्ट में दिये गये प्ररूप से है;

(झ) “सरकार” का तात्पर्य उत्तर प्रदेश सरकार से है;

(ञ) “सूचना आयुक्त” का तात्पर्य अधिनियम की धारा 15 की उपधारा (3) के अधीन नियुक्त राज्य सूचना आयुक्त से है;

(त) “रजिस्ट्रार” का तात्पर्य आयोग के रजिस्ट्रार से है और उसके अन्तर्गत संयुक्त रजिस्ट्रार और उप रजिस्ट्रार भी सम्मिलित हैं;

(थ) “सचिव” का तात्पर्य आयोग के सचिव से है और उसके अन्तर्गत संयुक्त सचिव और उप-सचिव भी सम्मिलित हैं;

(द) “राज्य लोक सूचना अधिकारी” का तात्पर्य अधिनियम की धारा 5 की उपधारा (1) के अधीन किसी लोक प्राधिकरण द्वारा इस रूप में पदाभिहित किसी अधिकारी से है और उसके अन्तर्गत अधिनियम की धारा 5 की उपधारा (2) के अधीन इस प्रकार पदाभिहित कोई राज्य सहायक लोक सूचना अधिकारी भी सम्मिलित है;

(2) इसमें प्रयुक्त किन्तु अपरिभाषित शब्दों और पदों के वही अर्थ होंगे जो अधिनियम में उनके लिए समनुदेशित हैं।

3. लोक प्राधिकरण, राज्य लोक सूचना अधिकारी तथा प्रथम अपीलीय प्राधिकारी

(1) सरकार का प्रत्येक विभाग अपने अधीन लोक प्राधिकरणों की सूची तैयार कर अधिसूचित करेगा।

(2) प्रत्येक लोक प्राधिकरण द्वारा अपने अधीन प्रशासनिक इकाईयों तथा कार्यालयों में उतनी संख्या में जितनी आवश्यकता हो, अधिकारियों को राज्य लोक सूचना अधिकारियों के रूप में नियुक्त किया जायेगा, व ऐसी नियुक्ति सम्बन्धित अधिकारी के नाम से न होकर पदनाम से की जायेगी।

(3) प्रत्येक लोक प्राधिकरण द्वारा राज्य लोक सूचना अधिकारियों से वरिष्ठ अधिकारी को अधिनियम की धारा 19 की उपधारा (1) के अधीन दाखिल की गयी अपील सुनकर उस पर निर्णय देने हेतु प्रथम अपीलीय प्राधिकारी नियुक्त किया जायेगा, व ऐसी नियुक्ति सम्बन्धित अधिकारी के नाम से न होकर पदनाम से की जायेगी।

(4) सरकार के प्रत्येक विभाग के अधीन लोक प्राधिकरणों की सूची तथा ऐसे प्रत्येक लोक प्राधिकरण के लिए राज्य लोक सूचना अधिकारियों तथा प्रथम अपीलीय प्राधिकारियों की सूची सम्बन्धित विभाग द्वारा प्ररूप-1 में दिये गये रूपविधान पर तैयार कर अधिसूचित की जायेगी, तथा ऐसे अधिसूचना की एक प्रति आयोग को उपलब्ध कराई जायेगी।

4. सूचना अभिप्राप्त करने के लिए अनुरोध को शासित करने वाले नियम

(1) कोई व्यक्ति जो कि इस अधिनियम के अधीन किसी लोक प्राधिकरण से कोई सूचना अभिप्राप्त करना चाहता है, लिखित रूप में या इलेक्ट्रानिक युक्ति के माध्यम से सम्बन्धित लोक प्राधिकरण के राज्य लोक सूचना अधिकारी से अनुरोध करेगा। अनुरोध प्ररूप-2 पर दिये गये रूपविधान में किया जायेगा :

परन्तु सादे कागज पर लिखित सूचना अभिप्राप्त करने हेतु प्रस्तुत अनुरोध एवं साथ में प्ररूप-2 में यथा अपेक्षित समस्त विवरणों को राज्य लोक सूचना अधिकारी द्वारा विचारार्थ प्राप्त किया जायेगा।

(2) अधिनियम के अधीन सूचना अभिप्राप्त करने के लिए किसी अनुरोध के लिए निम्‍नलिखित शर्तें पूरी होनी चाहिए-

(क) माँगी गयी सूचना सम्बन्धित लोक प्राधिकरण द्वारा रखे गये या उसके नियन्त्रणाधीन अभिलेखों का एक भाग होनी चाहिए।

(ख) [2][मांगी गयी सूचना-

(एक) में ऐसे अनुपलब्ध आंकड़ों का नया संग्रह किया जाना अन्तर्वलित नहीं होना चाहिए जिनको अनुरक्षित किया जाना किसी विधि अथवा लोक प्राधिकरण के किन्हीं नियमों या विनियमों के अन्तर्गत अपेक्षित नहीं है; या

(दो) में विद्यमान आंकड़ों का नये सिरे से निर्वचन या विश्लेषण करने या विद्यमान आंकड़ों के आधार पर निष्कर्ष निकालने या धारणा बनाने या परामर्श या राय देने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए, या

(तीन) में काल्पनिक प्रश्नों या उत्तर प्रदान करना अन्तर्ग्रस्त नहीं होना चाहिए; या

(चार) में प्रश्न “क्यों”, जिसके माध्यम से किसी कार्य के किये जाने अथवा न किये जाने के औचित्य की मांग की गयी हो, का उत्तर दिया जाना अन्तर्ग्रस्त नहीं होना चाहिए जब तक कि ऐसे प्रश्न का उत्तर, सम्बन्धित लोक प्राधिकरण द्वारा धारित अभिलेख का भाग न हो; या

(पाँच) इतनी विस्तृत नहीं होनी चाहिए कि उसके संकलन में संसाधनों का अननुपाती रूप से विचलन अन्तर्ग्रस्त हो जाने के कारण सम्बन्धित लोक प्राधिकरण की दक्ष प्रचालन प्रभावित हो जाये।

(छ) ऐसी नहीं होनी चाहिए, जो किसी अन्य विधि, नियम, विनियम या कार्यपालिका आदेश के उपबन्धों के अधीन प्राप्त की जा सकती है।]

(ग) सूचना प्राप्त करने के लिए प्रस्तुत अनुरोध में पाँच सौ से अधिक शब्द नहीं होने चाहिये।

(3) राज्य लोक सूचना अधिकारी अनुरोध की पावती सम्यक् रूप से अभिस्वीकार करेगा और उसके विवरण को उक्त प्रयोजन के लिए प्ररूप-3 में दिये गये रूपविधान में रखी गयी आवेदन पंजी में प्रविष्ट करेगा।

(4) अधिनियम के अधीन सूचना अभिप्राप्त करने के अनुरोध के साथ नियम-5 में विहित शुल्क संलग्न किया जायेगा।

(5) यदि राज्य लोक सूचना अधिकारी यह पाता है कि सूचना के प्रकटन के लिए किया गया अनुरोध अंशतः या पूर्णतः किसी एक अन्य लोक प्राधिकरण से सम्बन्धित है, तो ऐसा राज्य लोक सूचना अधिकारी अनुरोध प्राप्त होने के दिनांक से पांच दिनों के भीतर, अनुरोध को या उसके ऐसे भाग को जो उपयुक्त हो, प्ररूप-4 पर दिये गये रूपविधान में, अन्य लोक प्राधिकरण को अन्तरित कर देगा, तथा नियत अवधि के भीतर वांछित सूचना का वह भाग जो उसके अपने लोक प्राधिकरण द्वारा धारित है, आवेदक को उपलब्ध करा देगा।

परन्तु यदि किसी लोक प्राधिकरण से मांगी गयी सूचना, अंशतः या पूर्णतः दो या दो से अधिक अन्य लोक प्राधिकरणों द्वारा धारित है, तो राज्य लोक सूचना अधिकारी द्वारा सूचना के लिए किये गये अनुरोध को ऐसे अन्य लोक प्राधिकरणों को अन्तरित नहीं किया जायेगा। राज्य लोक सूचना अधिकारी आवेदक को सूचना का केवल वह भाग उपलब्ध करायेगा जो उसके अपने लोक प्राधिकरण द्वारा धारित है, तथा आवेदक को परामर्श देगा कि वह अन्य सम्बन्धित लोक प्राधिकरणों, जहाँ वांछित सूचना के अन्य भाग धारित हैं, के राज्य लोक सूचना अधिकारियों के समक्ष अलग-अलग सूचना के अनुरोध प्रस्तुत करे।

(6) सूचना हेतु अनुरोध की प्राप्ति पर राज्य लोक सूचना अधिकारी अधिनियम की धारा 7, 8, और 9 के उपबन्धों के अनुसार अनुरोध को निस्तारित करेगा-

(क) यदि राज्य लोक सूचना अधिकारी का यह मत हो कि माँगी गयी सूचना दी जानी है, तो वह आवेदक को सूचना प्ररूप-5 में प्रदान करेगा। सूचना दिये जाने के दिनांक को उपरोक्त उपनियम (3) में उल्लिखित पंजी में प्रविष्ट किया जायेगा।

(ख) यदि राज्य लोक सूचना अधिकारी का यह मत हो कि मांगी गयी सूचना किसी ऐसी अग्रतर फीस के भुगतान पर ही प्रदान की जा सकती है जो नियम-5 में यथाविहित सूचना प्रदान करने की लागत का निरूपण करती हो, तो वह तद्नुसार आवेदक को प्ररूप-6 में सूचित करेगा और उसके विवरण को उपरोक्त उपनियम (3) में उल्लिखित पंजी में प्रविष्ट करेगा।

(ग) यदि राज्य लोक सूचना अधिकारी का यह मत हो कि सूचना के लिए किये गये अनुरोध को अधिनियम तथा / अथवा नियमावली के किसी प्राविधान के तहत अस्वीकार किया जाना है तो वह ऐसी अस्वीकृत को प्ररूप-7 में आवेदक को संसूचित करेगा। अस्वीकृति के दिनांक को उपनियम (3) में उल्लिखित पंजी में प्रविष्ट किया जायेगा ।

(7) यदि राज्य लोक सूचना अधिकारी का यह मत हो कि सूचना का कोई भाग नही प्रदान किया जा सकता है क्योंकि उसको प्रकट किये जाने से छूट प्रदान की गयी है, तो राज्य लोक सूचना अधिकारी आवेदक को सूचना के केवल ऐसे भाग तक पहुँच प्राप्त करा सकता है जिसे प्रकट किये जाने से छूट नहीं प्राप्त है, और वह साथ-साथ आवेदक को अधिनियम की धारा 10 की उपधारा (2) के निबन्धनों के अनुसार प्ररूप-8 में नोटिस देगा।

(8) जहाँ राज्य लोक सूचना अधिकारी का, इस अधिनियम के अधीन किये गये किसी अनुरोध पर कोई ऐसी सूचना प्रकट करने का आशय हो जो किसी पर व्यक्ति से सम्बन्धित है या उसके द्वारा प्रदान की गयी है और उस पर व्यक्ति द्वारा गोपनीय मानी गयी है, वहां राज्य लोक सूचना अधिकारी अधिनियम की धारा 11 के उपबन्धों के अनुसार प्ररूप-9 पर दिये गये रूपविधान में ऐसे पर व्यक्ति को लिखित नोटिस देगा। राज्य लोक सूचना अधिकारी सूचना प्रकटन की बाबत कोई विनिश्चय करते समय पर व्यक्ति के निवेदन, यदि कोई हो, को ध्यान में रखेगा।

5. सूचना अभिप्राप्त करने हेतु फीस और लागत 

(1) अधिनियम की धारा 6 की उपधारा (1) के अधीन सूचना प्राप्त करने के अनुरोध के साथ सम्बन्धित लोक प्राधिकरण को संदेय समुचित प्राप्ति के बदले में नकद स्वरूप या डिमाण्ड ड्राफ्ट या बैंकर्स चेक या भारतीय पोस्टल आर्डर द्वारा दस रुपये का आवेदन शुल्क संलग्न किया जायेगा।

(2) अधिनियम की धारा 7 की उपधारा (1) के अधीन सूचना प्रदान करने के लिए लोक प्राधिकरण को सदैव समुचित प्राप्ति के बदले में नकद स्वरूप या डिमाण्ड ड्राफ्ट या बैंकर्स चेक या भारतीय पोस्टल आर्डर द्वारा निम्‍नलिखित दरों पर शुल्क प्रभारित किया जायेगा-

(एक) सृजित या प्रतिलिपि किए गए प्रत्येक पृष्ठ (ए-4 या ए-3 आकार के कागज में) के लिए दो रुपये;

(दो) बृहत्तर आकार के कागज में किसी प्रतिलिपि का वास्तविक प्रभार या लागत मूल्य;

(तीन) नमूनों या प्रतिदर्शो के लिए वास्तविक लागत या मूल्य और जहाँ सूचना निर्धारित मूल्य के प्रकाशन के रूप में उपलब्ध हो वहाँ इस प्रकार नियत किया गया मूल्य;

(चार) अभिलखों के निरीक्षण के लिए प्रथम घण्टे के लिए दस रुपये का शुल्क और तत्पश्चात् प्रत्येक पन्द्रह मिनट (या उसके आंशिक भाग) के लिए पाँच रुपये का शुल्क।

(3) धारा 7 की उपधारा (5) के अधीन सूचना प्राप्त करने के लिए लोक प्राधिकरण को संदेय समुचित प्राप्ति के बदले में नकद स्वरूप या डिमाण्ड ड्राफ्ट या बैंकर्स चेक या भारतीय पोस्टल आर्डर द्वारा शुल्क निम्नलिखित दरों पर प्रभारित किया जायेगा—

(एक) डिस्केट या फ्लापी या कम्पैक्ट डिस्क में प्रदान की गयी सूचना के लिए प्रति डिस्केट या फ्लापी या कम्पैक्ट डिस्क पचास रुपये, और

(दो) मुद्रित रूप में प्रदान की गयी सूचना के लिए ऐसे प्रकाशन हेतु नियत मूल्य पर या प्रकाशन के उद्धरणों के लिए दो रुपये प्रतिलिपि का प्रति पृष्ठ।

(4) मानचित्र और रेखाचित्रों आदि के मामले में श्रम और सामग्री में लगाये जाने में अपेक्षित लागत के आधार पर प्रत्येक मामले में शुल्क सम्बन्धित राज्य लोक सूचना अधिकारी द्वारा नियत किया जायेगा।

(5) उक्त शुल्क की धनराशि निम्‍न लेखाशीर्षक के अन्तर्गत जमा की जायेगी-

“0070-अन्य प्रशासनिक सेवायें-60-अन्य सेवायें-800-अन्य प्राप्तियाँ-11-सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अधीन प्राप्तियाँ”

6. शिकायतों का पंजीकरण और निस्तारण

(1) कोई भी व्यक्ति अधिनियम की धारा 18 के उपबन्धों के अनुसार आयोग में शिकायत फाइल कर सकता है।

(2) शिकायत, टंकित, मुद्रित अथवा स्वच्छ एवं पठनीय रूप से लिखित होनी चाहिए और तीन प्रतियों में फाइल की जानी चाहिए।

(3) शिकायत प्ररूप-10 में प्रस्तुत की जाय। किसी शिकायतकर्ता द्वारा सादे कागज पर लिखित शिकायत प्ररूप-10 में यथा अपेक्षित समस्त विवरणों के साथ दायर की जा सकती है।

(4) शिकायत के समर्थन में सभी आवश्यक दस्तावेज शिकायत के साथ संलग्‍न किये जायें।

(5) रजिस्ट्रार द्वारा प्रत्येक शिकायत का परीक्षण किया जायेगा। यदि रजिस्ट्रार का यह मत हो कि शिकायत नियमावली के उपबन्धों के अनुसार नहीं है तो वह शिकायत को उसमें पाई गई कमियों को इंगित करते हुए कमियों को दूर करने हेतु शिकायतकर्ता को वापस कर देगा, और उसके विवरण को प्ररूप-11 में उक्त प्रयोजन के लिए रखी गयी पंजी में प्रविष्ट करेगा। यदि रजिस्ट्रार का यह मत हो कि शिकायत नियमावली के उपबन्धों के अनुसार है तो वह शिकायत को संख्यांकित करायेगा और उसे प्ररूप- 12 में उक्त प्रयोजन के लिए रखी गयी पंजी में प्रविष्ट करायेगा।

(6) शिकायत पंजीकृत किये जाने के पश्चात् रजिस्ट्रार उसे सम्बन्धित मामले पर अधिकारिता रखने वाले मुख्य सूचना आयुक्त या सूचना आयुक्त को अग्रेषित करेगा ।

(7) आयोग द्वारा शिकायत पर वाद संख्या आवंटित की जायेगी तथा शिकायत पर पहली सुनवाई की तिथि नियत की जायेगी।

(8) आयोग शिकायतकर्ता और सम्बन्धित राज्य लोक सूचना अधिकारी को सुनवाई के लिए नियत दिनांक से कम से कम 15 दिन पूर्व नोटिसें जारी करेगा। शिकायत की एक प्रति राज्य लोक सूचना अधिकारी को भी इस निर्देश के साथ प्रेषित की जाएगी कि वह नियत दिनांक तक अपना लिखित कथन दो प्रतियों में प्रस्तुत करे।

(1) शिकायत की सुनवाई के दिनांक को राज्य लोक सूचना अधिकारी के लिखित कथन की एक प्रति शिकायतकर्ता को उसके निवेदन के लिए यदि कोई हो, उपलब्ध कराई जाएगी। शिकायत की विषयवस्तु, राज्य लोक सूचना अधिकारी के लिखित कथन और सुनवाई के समय पक्षकारों द्वारा किए गए निवेदन पर विचार करने के पश्चात् यदि आयोग का यह समाधान हो जाता है कि मामले में जाँच के लिए कोई युक्तियुक्त आधार विद्यमान नहीं है, तो वह शिकायत को खारिज कर देगा। यदि आयोग संतुष्ट होता है कि मामले में जाँच करने के युक्तियुक्त आधार हैं, तो उसके सम्बन्ध में जाँच आरम्भ करा सकता है, व ऐसी जाँच अधिनियम की धारा 18 की उपधारा (3) और (4) और इस नियमावली के उपबन्धों के अनुसार की जायेगी।

7. अपीलों का पंजीकरण और निस्तारण

(1) कोई व्यक्ति जिसे, यथास्थिति, किसी राज्य लोक सूचना अधिकारी से विहित समय के भीतर कोई विनिश्चय प्राप्त नहीं हुआ है या जो राज्य लोक सूचना अधिकारी के किसी विनिश्चय से व्यथित है, विहित समय के भीतर ऐसे अधिकारी को अपील कर सकेगा, जिसे प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के रूप में पदाभिहित किया गया हो। अपील प्ररूप-13 में दिये गये रूपविधान में प्रस्तुत की जायेगी। किसी अपीलकर्ता द्वारा सादे कागज पर लिखित अपील प्ररूप-13 में यथा अपेक्षित समस्त विवरणों के साथ दायर की जा सकती है। प्रथम अपीलीय प्राधिकारी अपील का निपटारा अधिनियम की धारा 19 की उपधारा (1) और (2) एवं इस नियमावली के अनुसार करेगा।

(2) प्रथम अपीलीय प्राधिकारी द्वारा पारित किसी आदेश से या विहित अवधि के भीतर प्रथम अपीलीय प्राधिकारी द्वारा उसकी अपील का निस्तारण न किए जाने से व्यथित कोई व्यक्ति आयोग को विहित समय के भीतर प्ररूप-14 में द्वितीय अपील दायर कर सकता है। किसी अपीलकर्ता द्वारा सादे कागज पर लिखित द्वितीय अपील प्ररूप-14 में यथा अपेक्षित समस्त विवरणों के साथ दायर की जा सकती है। ऐसी अपील के साथ निम्नलिखित दस्तावेज, जो अपीलार्थी द्वारा सत्य प्रतियों के रूप में सम्यक् रूप से सत्यापित होंगे, संलग्न किए जाएंगे-

(एक) अधिनियम की धारा 6 की उपधारा (1) के अधीन राज्य लोक सूचना अधिकारी को प्रस्तुत की गई सूचना सम्बन्धी अनुरोध की एक प्रति;

(दो) राज्य लोक सूचना अधिकारी से प्राप्त उत्तर, यदि कोई हो, की एक प्रति;

(तीन) अधिनियम की धारा 19 की उपधारा (1) के अधीन प्रथम अपीलीय प्राधिकारी को की गई अपील की एक प्रति;

(चार) प्रथम अपीलीय प्राधिकारी से प्राप्त आदेश, यदि कोई हो, की एक प्रति;

(पांच) ऐसे दस्तावेजों की अन्य प्रतियां जिन पर अपीलार्थी निर्भर हो और जो उसकी अपील में निर्दिष्ट हो; और

(छ) अपीलार्थी की ओर से इस आशय का एक प्रमाण-पत्र कि उसके द्वारा इसके पूर्व उसी आधार पर उसी प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के विरुद्ध कोई अपील फाइल नहीं की गई थी।

आयोग को की गई अपील टंकित, मुद्रित अथवा स्वच्छ एवं पठनीय रूप से लिखित होनी चाहिए। और तीन प्रतियों में प्रस्तुत की जानी चाहिए।

(3) आयोग में दायर की गई प्रत्येक अपील का परीक्षण रजिस्ट्रार द्वारा किया जाएगा। यदि रजिस्ट्रार का यह मत हो कि अपील इस नियमावली के उपबन्धों के अनुसार नहीं है, तो वह अपील को उसमें पाई गई कमियों को इंगित करते हुए, कमियों को दूर करने हेतु अपीलार्थी को वापस कर देगा और उसके विवरण को प्ररूप-11 में उक्त प्रयोजन के लिए रखी गयी पंजी में प्रविष्ट करेगा। यदि रजिस्ट्रार का यह मत हो कि अपील इस नियमावली के उपबन्धों के अनुसार हैं, तो वह यह निदेशित करेगा कि अपील को संख्यांकित किया जाय और उसे प्ररूप-15 में उक्त प्रयोजन के लिए रखी गयी पंजी में प्रविष्ट किया जाय।

(4) अपील पंजीकृत किए जाने के पश्चात् रजिस्ट्रार उसे सम्बन्धित मामले पर अधिकारिता रखने वाले मुख्य सूचना आयुक्त या सूचना आयुक्त को अग्रेषित करेगा।

(5) आयोग द्वारा अपील पर वाद संख्या आवंटित की जायेगी तथा अपील पर पहली सुनवाई की तिथि नियत की जायेगी।

(6) आयोग अपीलार्थी, राज्य लोक सूचना अधिकारी और सम्बन्धित प्रथम अपीलीय प्राधिकारी को सुनवाई के लिए नियत दिनांक से कम से कम 15 दिन पूर्व नोटिसें जारी करेगा। अपील की एक-एक प्रति राज्य लोक सूचना अधिकारी और प्रथम अपीलीय प्राधिकारी को भी इस निर्देश सहित प्रेषित की जाएगी कि वे अपना-अपना लिखित कथन दो प्रतियों में प्रस्तुत करें।

(7) अपील की सुनवाई की तिथि को राज्य लोक सूचना अधिकारी और प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के लिखित कथन की एक-एक प्रति अपीलार्थी को उसके निवेदन के लिए, यदि कोई हो, उपलब्ध कराई जाएगी। अपील की विषय-वस्तु, राज्य लोक सूचना अधिकारी और प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के लिखित कथनों और सुनवाई के समय पक्षकारों द्वारा किए निवेदन पर विचार करने के पश्चात् आयोग, यदि उसका समाधान हो जाता हैं कि अपील पर विचार करने के लिए युक्तियुक्त आधार हैं, उसके सम्बन्ध में अग्रतर सुनवाई के लिए एक तिथि निश्चित कर सकता है। ऐसी सुनवाई अधिनियम की धारा 19 और इस नियमावली के उपबन्धों के अनसार की जाएगी। यदि आयोग का यह मत हो कि अपील पर अग्रेतर विचार करने के लिए कोई युक्तियुक्त आधार विद्यमान नहीं है तो वह अपील को निरस्त कर देगा।

(8) आयोग, अपील की सुनवाई करते समय-

(एक) अपीलार्थी से शपथ पर मौखिक साक्ष्य या शपथ पत्र पर लिखित साक्ष्य ग्रहण कर सकता है;

(दो) राज्य लोक सूचना अधिकारी और / या प्रथम अपीलीय प्राधिकारी से शपथ पर मौखिक साक्ष्य या शपथ पत्र पर लिखित साक्ष्य ग्रहण कर सकता है;

(तीन) पर व्यक्ति से या किसी ऐसे अन्य व्यक्ति से जिसका साक्ष्य आवश्यक समझा जाए, शपथ पर मौखिक साक्ष्य या शपथ पत्र पर लिखित साक्ष्य ग्रहण कर सकता है;

(चार) दस्तावेजों, लोक अभिलेखों या उनकी प्रतियों का परिशीलन या निरीक्षण कर सकता है।

8. आयोग द्वारा नोटिस की तामील

किसी शिकायत या अपील पर किसी सुनवाई में आयोग प्ररूप-16 में किसी पक्षकार को नाम से नोटिस की तामील कर सकेगा। सम्बन्धित व्यक्ति पर नोटिस की तामील निम्नलिखित में से किसी माध्यम से की जा सकेगी—

(एक) यथास्थिति, शिकायतकर्ता, अपीलार्थी या प्रतिवादी द्वारा तामील कराके;

(दो) आदेशिका वाहक के माध्यम से दस्ती परिदान द्वारा;

(तीन) पंजीकृत डाक या स्पीड पोस्ट द्वारा;

(चार) ई-मेल पता उपलब्ध होने की दशा में ई-मेल द्वारा ।

9. शिकायत या अपील पर सुनवाई के दौरान पक्षकारों की उपस्थिति

(1) किसी शिकायत या अपील की सुनवाई के दौरान शिकायतकर्ता या अपीलार्थी स्वयं व्यक्तिगत रूप से या सम्यक् रूप से प्राधिकृत अपने प्रतिनिधि द्वारा आयोग में उपस्थित हो सकता है। किन्तु आयोग, यदि वह आवश्यक समझे, शिकायतकर्ता या अपीलार्थी, जैसा भी हो, को सुनवाई के विनिर्दिष्ट दिनांक को आयोग में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने के लिए समन कर सकता है।

(2) जिस राज्य लोक सूचना अधिकारी के विरुद्ध शिकायत या अपील दायर की गयी है वह स्वेच्छा से सुनवाई के दौरान उपस्थित रह सकता है। किन्तु आयोग अपने विवेकानुसार राज्य लोक सूचना अधिकारी को व्यक्तिगत रूप से अथवा यथोचित वरिष्ठा के उसके प्राधिकृत प्रतिनिधि को, सुनवाई के दौरान उपस्थित रहने हेतु निर्देशित कर सकता है।

10. सुनवाई का स्थगन

किसी सुनवाई के दौरान कोई भी पक्षकार सुनवाई के स्थगन के लिए आवेदन कर सकता है। यदि आयोग का यह मत हो कि स्थगन की मांग करने का कारण न्यायोचित और पर्याप्त है, तो वह स्थगन मंजूर कर सकता है।

11. किसी कार्यवाही का एक पीठ से दूसरी पीठ को अंतरण

आयोग के समक्ष किसी कार्यवाही से सम्बन्धित किसी भी पक्ष द्वारा मुख्य सूचना आयुक्त को आवेदन प्रस्तुत करके उक्त कार्यवाही को सुनवाई कर रही पीठ से किसी अन्य पीठ को अन्तरित करने की प्रार्थना की जा सकती है।

मुख्य सूचना आयुक्त द्वारा उक्त आवेदन पर सम्बन्धित सूचना आयुक्त की टिप्पणी, यदि कोई हो, पर विचारोपरान्त, उक्त कार्यवाही को किसी अन्य पीठ को अन्तरित किया जा सकता है, यदि उसका यह मत हो कि ऐसे अन्तरण के लिए समुचित आधार है।

इसके अतिरिक्त, किसी सूचना आयुक्त द्वारा अपने समक्ष लम्बित किसी कार्यवाही को किसी अन्य पीठ को अन्तरित करने हेतु मुख्य सूचना आयुक्त से अनुरोध किया जा सकता है, तथा मुख्य सूचना आयुक्त द्वारा उक्त कार्यवाही को किसी अन्य पीठ को अन्तरित किया जा सकता है, यदि उसका यह मत हो कि ऐसे अन्तरण के लिए समुचित आधार है।

12. आयोग द्वारा प्रक्रियात्मक त्रुटि के आधार पर अपने आदेश की वापसी 

(1) आयोग के किसी आदेश से क्षुब्ध किसी पक्ष के आवेदन पर, आयोग द्वारा निम्न में से किसी प्रक्रियात्मक त्रुटि के आधार पर अपने आदेश को वापस लिया जा सकेगा :

(एक) आयोग द्वारा प्रश्नगत आदेश, आवेदक का कोई दोष न होते हुए भी, आवेदक को बिना सुने पारित किया गया है; अथवा

(दो) आयोग द्वारा प्रकरण की सुनवाई व निस्तारण नियत तिथि से भिन्न तिथि में कर दिया गया, तथा आवेदक का कोई दोष न होते हुए भी वह उक्त सुनवाई में उपस्थित नहीं हो सका।

(2) आयोग के आदेश की जानकारी होने के दिनांक से तीस दिन के भीतर आदेश की वापसी के लिए आवेदक द्वारा आवेदन प्रस्तुत किया जा सकता है।

(3) यदि आयोग का यह मत हो कि प्रथम दृष्टया आवेदन बलहीन है, तो वह वापसी सम्बन्धी आवेदन-पत्र को निरस्त कर सकता है।

(4) यदि आयोग का यह मत हो कि प्रकरण पर सुनवाई की आवश्यकता है, तो ऐसे वापसी आवेदन-पत्र पर कोई आदेश पारित करने से पूर्व, आयोग द्वारा कार्यवाही से सम्बन्धित समस्त पक्षकारों को सुनवाई का अवसर देने के लिए नोटिस जारी किया जायेगा।

13. शिकायत या अपील को वापस लिया जाना, उसका संशोधन या समापन किया जाना

 (1) किसी शिकायत या अपील पर सुनवाई के दौरान आयोग, यथास्थिति, शिकायतकर्ता या अपीलार्थी द्वारा अनुरोध किए जाने पर शिकायत या अपील को वापस लिए जाने की अनुज्ञा दे सकता है।

(2) आयोग यदि वह न्यायोचित और उपयुक्त समझे, सुनवाई के दौरान सम्बन्धित किसी पक्षकार द्वारा लिखित रूप में किए गए अनुरोध पर किसी शिकायत, अपील या लिखित कथन में किसी संशोधन को मंजूर कर सकता है।

(3) आयोग के समक्ष किसी शिकायत या अपील पर लम्बित कार्यवाहियाँ यथास्थिति, शिकायतकर्ता या अपीलार्थी की मृत्यु पर समाप्त हो जाएंगी।

14.आयोग का आदेश

किसी शिकायत या अपील की सुनवाई की समाप्ति पर, आयोग, उसी दिनांक को या उक्त प्रयोजन के लिए नियत व पक्षकारों को संसूचित किसी आगामी तिथि पर आदेश पारित करेगा। आयोग के ऐसे प्रत्येक आदेश पर शिकायत या अपील की सुनवाई करने वाले आयुक्त द्वारा हस्ताक्षर और तिथि अंकित की जाएगी।

15. आयोग द्वारा अधिरोपित शास्ति की वसूली की प्रक्रिया

(1) आयोग किसी शिकायत या अपील का विनिश्चय करते समय किसी राज्य लोक सूचना अधिकारी पर अधिनियम की धारा 20 के उपबन्धों के अनुसार शास्ति अधिरोपित कर सकता है।

(2) किसी राज्य लोक सूचना अधिकारी पर शास्ति अधिरोपित करने हेतु आयोग द्वारा पारित आदेश की एक प्रति रजिस्ट्रार को अग्रसारित की जायेगी। उक्त आदेश की प्राप्ति के उपरान्त, रजिस्ट्रार द्वारा आदेश के विवरण को प्ररूप-17 में उक्त प्रयोजन के लिए रखी गयी पंजी में प्रविष्ट किया जाएगा।

(3) शास्ति के आदेश को रजिस्ट्रार द्वारा प्ररूप-18 से सम्बन्धित नियन्त्रक प्राधिकारी को सम्बोधित एक पत्र द्वारा इस आशय से पहुँचाया जाएगा कि राज्य लोक सूचना अधिकारी के वेतन से शास्ति की धनराशि की वसूली की जाए और इस धनराशि को नियत दिनांक तक निम्न लेखाशीर्ष में जमा किया जाए:

“0070-अन्य प्रशासनिक सेवायें-60-अन्य सेवायें-800 अन्य प्राप्तियाँ-15-सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अधीन अधिरोपित शास्तियाँ”

(4) आयोग द्वारा पारित आदेश के अनुपालनार्थ सम्बन्धित राज्य लोक सूचना अधिकारी से शास्ति की धनराशि की वसूली सुनिश्चित करने हेतु सरकार द्वारा आवश्यक व्यवस्थायें की जायेंगी।

(5) रजिस्ट्रार ऐसे प्रत्येक मामले, जिसमें आयोग ने किसी राज्य लोक सूचना अधिकारी पर शास्ति अधिरोपित की है, के अनुसरण हेतु उत्तरदायी रहेगा जब तक अनुपालन आख्या न प्राप्त हो जाय।

16. आयोग का सचिव

(1) सरकार किसी ऐसे अधिकारी को, जो सरकार के विशेष सचिव से निम्न स्तर का न हो, आयोग के सचिव के रूप में नियुक्त करेगी।

(2) मुख्य सूचना आयुक्त के पर्यवेक्षण के अधीन सचिव आयोग के प्रशासनिक कार्यकरण के लिए उत्तरदायी प्रधान अधिकारी होगा।

(3) मुख्य सूचना आयुक्त द्वारा अधिनियम की धारा 15 की उपधारा (4) के अधीन स्वयं में निहित शक्ति का प्रयोग करते हुए सचिव के कर्तव्यों एवं दायित्वों का निर्धारण किया जायेगा।

(4) मुख्य सूचना आयुक्त सचिव से अधीनस्थ किसी अधिकारी को संयुक्त सचिव या उपसचिव के रूप में पदाभिहित कर सकता है।

(5) सचिव मुख्य सूचना आयुक्त के अनुमोदन से स्वयं को सौंपे गये किसी कृत्य को स्वयं से अधीनस्थ किसी अधिकारी को प्रत्यायोजित कर सकता है।

(6) सचिव की अनुपस्थिति में मुख्य सूचना आयुक्त आयोग के किसी अधिकारी को सचिव की शक्तियों के प्रयोग और कृत्यों के निष्पादन के लिए निदेशित कर सकता है।

17. आयोग का रजिस्ट्रार 

(1) सरकार किसी ऐसे अधिकारी को, जो अपर जिला न्यायाधीश से निम्न स्तर का न हो, आयोग के विधि अधिकारी के रूप में नियुक्त करेगा। विधि अधिकारी आयोग का पदेन रजिस्ट्रार होगा।

(2) मुख्य सूचना आयुक्त के पर्यवेक्षण के अधीन रजिस्ट्रार आयोग के न्यायिक कार्यकरण के प्रबन्ध के लिए उत्तरदायी प्रधान अधिकारी होगा।

(3) मुख्य सूचना आयुक्त द्वारा अधिनियम की धारा 15 की उपधारा (4) के अधीन स्वयं में निहित शक्ति का प्रयोग करते हुए रजिस्ट्रार के कर्तव्यों एवं दायित्वों का निर्धारण किया जायेगा।

(4) मुख्य सूचना आयुक्त रजिस्ट्रार से अधीनस्थ किसी अधिकारी को संयुक्त रजिस्ट्रार या उप-रजिस्ट्रार के रूप में पदाभिहित कर सकता है।

(5) रजिस्ट्रार मुख्य सूचना आयुक्त के अनुमोदन से स्वयं को सौंपे गये किसी कृत्य को स्वयं से अधीनस्थ किसी अधिकारी को प्रत्यायोजित कर सकता है।

(6) रजिस्ट्रार की अनुपस्थिति में, मुख्य सूचना आयुक्त आयोग के किसी अधिकारी को रजिस्ट्रार की शक्तियों के प्रयोग और कृत्यों के निष्पादन के लिए निदेशित कर सकता है।

18. मुद्रा एवं प्रतीक

आयोग की मुद्रा एवं प्रतीक ऐसे होंगे जैसा आयोग विनिर्दिष्ट करे ।

19. आयोग की भाषा

(1) कोई शिकायत या अपील हिन्दी या अंग्रेजी में फाइल की जा सकती है और उससे सम्बन्धित समस्त दस्तावेज भी हिन्दी या अंग्रेजी में फाइल किये जा सकते हैं। जहाँ कोई दस्तावेज मूल रूप में अंग्रेजी या हिन्दी से भिन्न भाषा में हों, वहाँ मूल दस्तावेज के साथ हिन्दी या अंग्रेजी में सत्यापित अधिप्रमाणित अनुवाद भी संलग्न किया जायेगा। या लिखित कथन, प्रत्युत्तर, उत्तर या आयोग के समक्ष फाइल किये गये किसी अन्य दस्तावेज के मामले में भी लागू होगा।

(2) आयोग की कार्यवाहियां हिन्दी में संचालित की जायेंगी।

Footnotes

[1]. देखें उ.प्र. अधिसूचना संख्या-544/43-2-2015, सू.आ.नि. 2015 (1)-2015, दिनाक 3 दिसम्बर, 2015 द्वारा उ.प्र. असाधारण, गजट, भाग-4, खण्ड (ख), दिनांक 3 दिसम्बर, 2015 को प्रकाशित।

[2] उ.प्र. सूचना का अधिकार (प्रथम संशोधन) नियमावली, 2019 द्वारा प्रतिस्थापित (दिनांक 13.8.2019 से प्रभावी)।